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________________ [ आठवां प्रकरण होगा ? आज कल दूसरी जातिकी स्त्रीसे तो विवाह कभी होता ही नहीं यह वाज बहुत दिनोंसे प्रचलित है यदि कोई पुत्र ऐसे विवाहसे पैदा हो तो वह अनौरस पुत्र होगा और उसे वरासत में अधिकार नहीं होगा इसलिये यह प्रश्न वृथा है । मगर जब विवाह अपनी क़ौममें भिन्न भिन्न खान्दानोंकी लड़कियोंसे हुआ हो और जायज़ हो उनसे पैदा हुये पुत्रोंमें यह प्रश्न ज़रूर उठता है -- मदरासमें इसी तरहका एक मामला पैदा हुआ उसमें दो पुत्र दो माताओं से पैदा हुये थे । बापकी पहिली स्त्री निःसन्तान पहिले मर चुकी थी - पीछेकी स्त्रियोंके ये दोनों पुत्र थे, इनमें जो छोटा बेटा था उसकी माकी शादी बड़े बेटेकी मासे पहिले हुई थी - हाईकोर्टने मानाकि छोटा बेटा वारिस है क्योंकि उसकी मा ऊंचे दर्जे की बेटी है यानी ज्येष्ठ पुत्रकी मा एक रियायाकी लड़की है और छोटे बेटेकी मा एक ज़िमीदारकी लड़की है” देखो - 26 I. A. 555; S. C, 22 Mad. 515. ६६० बटवारा ज्येष्ठ पुत्रकी लाइन - ऐसे ज्येष्ठ पुत्रकी मृत्युके बाद जबकि जायदादका वह मालिक बन गया हो तो उस जायदादकी बरासत उसी ज्येष्ठ पुत्रकी ज्येष्ठ लाइन में रहेगी । लेकिन यदि ज्येष्ठ पुत्र जायदादके मालिक होनेसे पहिलेही मर जाय तो फिर उसका पुत्र वारिस होगा या मरनेवालेका भाई, इस प्रश्नका स्पष्ट निर्णय अभी तक नहीं हुआ, देखो मेनहिन्दूलॉ 7 ed. P. 736. अनौरस पुत्र - यदि ज्येष्ठ पुत्रके नज़दीकी रिश्तेदार न हों बहुत दूरके हों और उसके पिताका एक अनौरस पुत्र हो तो ऐसा माना जा सकता है कि दूसरे बहुत दूर के रिश्तेदारोंके होते वह अनौरस पुत्र ज्येष्ठ पुत्रका वारिस होगा - 17 I. A. 128; 18 Cal. 151. बटवारा हो सकने वाली जायदाद में जिस तरह हर एक पुरुष मालिक से नया कुटुम्ब बनता है उसी तरह न बट सकने वाली जायदाद के पुरुष मालिक में भी बनता है - 23 I. A. 128; 19 Mad. 451.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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