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________________ ६१० wwwwwwwwww बटवारा [आठवां प्रकरण 'विभक्तेषु सुतो जातः सवर्णायां विभागभाक् -- सवर्णा स्त्रीमें पैदा हुआ पुत्र जो बटवारेके बाद जन्मे वह फिरसे अपने हिस्सेका बटवारा करा सकता है यही बात हिन्दूलॉ में भी मानी गयी है कि जो लड़का बटवारा हो जानेके पश्चात् पैदा हो मगर बटवारेके समय गर्भमें हो वह अपने हिस्सेके पानेका अधिकारी वैसाही है जैसा कि बटवारेके समय उसके मौजूद होनेकी सूरतमें होता इसलिये अगर बटवारेमें उस गर्भस्थित लड़केका हिस्सा रक्षित न रखा गया हो तो वह पैदा होनेपर फिर उस जायदादका बटवारा करा सकता है और अपना हिस्सा ले सकता है, देखो--4 Mad. H. C. 307; 12 Bom. 105, 108, 109. उदाहरण-(१) रमेश और उसके दो लड़के महेश और सुरेश तीनों मुश्त रमेश रका खान्दानमें रहते हैं बाप और दोनों बेटोंके दरमियान .. . मौरूसी जायदादका बटवारा हो गया उस समय रमेशकी - स्त्री गर्भवती थी और यह बात घरके सब लोगोंको मालूम ' थी ऐसी सूरतमें कुल जायदाद चार बराबर भागोंमें बटना चाहिये यानी रमेश और उसके दो पुत्र जीवित तथा एक वह पुत्र जो गर्भ में है। जायदादका प्रत्येक हिस्सा जीवित हिस्सेदार लेंगे और एक चौथाई हिस्सा गर्भस्थित पुत्रके लिये रक्षित रखा जायगा। अगर पुत्र पैदा हुआ तो वह अपना हिस्सा लेगा और अगर लड़की पैदा हुई तो वह हिस्सा फिर तीनों को बांट दिया जायगा यानी रमेश और उसके दोनों पुत्रोंको।गर्भस्थित पुत्रके अधिकार देखो दफा ४६०. (२) अगर बापने बटवारेके समय अपना हिस्सा लिया हो उसके बाद यदि पुत्र पैदा हुआ हो मगर बटवारेके समय गर्भमें न हो वह पुत्र अपने बापकी सब जायदादका अकेला मालिक होगा अर्थात् बटवारेके समय जो जायदाद उसके बापको मिली हो और जो जायदाद उसके बापके पास बटवारे से पहिले हो या पीछेसे कमाई गई हो वह सब उस पुत्रको मिलेगी, देखोकालिदास बनाम कृष्ण 2 Beng. L. R. F. B. 103-118. नवलसिंह बनाम भगवानसिंह 4 All. 427; 23 Bom. 636. मनु कहते हैं किऊर्ध्वं विभाजातस्तु पित्र्यमेव धनं हरेत् ६-२१६. बटवारेके बाद जो लड़का पैदाहो वह अपने बापके सब धनको पाता है। अनीशः पूर्वजः पित्रोद्घतुर्भागे विभक्तजः पुत्रैः सह विभक्तेन पित्रायत्स्वयमर्जितम् विभक्तजस्य तत्सर्वं मनीशा पूर्वजाःस्मृताः। बृथ्शाता०
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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