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________________ मुश्तरका खान्दान [छठा प्रकरण wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww नाबालिग खान्दानी साझीदार द्वारा मंसूखीकी नालिश-गैर तहज़ीबी या गैर कानूनी साबित करने की पुत्रकी जिम्मेदारी-गिरधारीलाल बनाम किशनचन्द 85 I. O. 463; A. I. h. 1925 Cal. 240. मुश्तरका खान्दान-बिना आवश्यकताका इन्तकाल पूर्णतया मंसूख किया जा सकता है, न कि केवल उस हद तकही, जो कि बिरोध करने वाले हिस्सेदारका अधिकार है-चिरौंजीलाल बनाम करतारसिंह A. I. R. 1925 Lah. 130. रेहननामेकी डिकरी और नीलाम और जब नीलाम नाबालिग द्वारा मंसूख न कराई जा सके-गजाधर पांडे बनाम यदुवीर पांडे 47 A. 122; 85 I.C. 31; A. I. R. 1925 All. 183. उदाहरण-(१) जय और विजय दो हिन्दु भाई मुश्तरका खान्दानमें हैं और कलकत्तमें रहते हैं उनके खान्दानमें मिताक्षराला माना जाता है जय खान्दानका मेनेजर है उसने जायज़ ज़रूरतके लिये ३०००)रु० महेशसे लेकर खान्दानकी जायदाद उसके पास रेहन करदी। रेहनमें विजयकी मंजूरी नहीं लीगयी थी। पीछे विजयने अदालतमें रेहन मंसूख किये जानेका दावा जय और महेशपर किया अदालतको मालूम हुआ कि जयने जायज़ ज़रूरत बता कर महेशसे कर्जा लिया था और महेशने उसकी बातपर विश्वास करके वह कर्जा दिया था ऐसी सूरतमें रेहन मंसूख करते हुये अदालतने यह हुक्म दिया कि जायदादमें आधा हिस्सा जयका रहे और आधा विजयका, परन्तु जय अपने आधे हिस्सोंमें से महेशका कुल कर्जा सूद सहित बराबर अदा करता रहे। इस तरहका फैसला बङ्गाल और संयक्त प्रान्तमें मिताक्षराला के अनुसार होगा। अगर रेहन करने के बाद जय मर जावे तो महेशका रुपया मारा जायगा उसे कुछ भी नहीं मिलेगा क्योंकि सरवाइवरशिपके द्वारा जय की जायदाद विजयके पास चली जायगी और विजय उसका पूरा मालिक हो जायगा परन्तु महेशके क़र्जाका जिम्मेदार नहीं रहेगा, देखो-माधोप्रसाद बनाम मेहरबानसिंह 18 Cal. 157; 17 I. A. 194. (२) ऊपरके उदाहरणको ध्यानमें रखकर पुनः विचार कगे जय और विजय दोनों मिताक्षरा मानने वाले हैं, जय मुश्तरका खान्दानकी जायदाद विजयकी बिना मंजूरी महेशको बेच दी, विजय उस विक्रीकी मंसूखीके लिये जय और महेशपर दावा करता है, यह साबित है कि जयने बिक्रीका रुपया जायदादके किसी जायज़ क़र्जेके चुकाने में अदा किया था ऐसे मामले में दङ्गाल और संयुक्त प्रांत के अन्तर्गत अदालत बिक्री मंसूख कर देगी मगर साथ ही यह भी हुक्मदे सकती है कि महेश बतौर सादे कर्जेके अपना रुपया वसूल करे। लेकिन अगर जयने वह बिक्रीका रुपया खास अपने कर्जेके चुकानेमें अदा किया हो या मुश्तरका खान्दानके किसी काममें जो जायज़ और ज़रूरी हो
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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