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________________ दफा ४५५-४५६ ] इन्तक़ाल मंसूरन करना तो ऐसी सूरत में वह सब विक्री, या रेहन, और इन्तकाल अदालतसे मंसूत्र हो जायगा । लेकिन अगर वह बेचने वाला कोपार्सनर पिता या पितामह हो और उसने जायदाद इन्तक़ाल उस क़र्जेके चुकानेके लिये किया हो जिसका ज़िक इस किताबकी दफा ४४८ में किया गया है तो वैसा इन्तक़ाल जायज़ माना जायगा कारण यह है कि बङ्गाल और संयुक्त प्रांत में कोपार्सनर मुश्तरका खान्दानके अपने हिस्सेका भी इन्तक़ाल दूसरे कोपार्सनरोंकी बिना मंजूरी नहीं कर सकता इसी लिये ऊपर कही हुई विक्री या रेहन या इन्तक़ाल सब मन्सूख हो जाता है । ५३५ जब मुश्तरका खान्दानका कोई आदमी इन्तक़ालके मंसूत्र करा दिये जानेकी अदालत में प्रार्थना करे तो अदालतको यह ज़रूरी नहीं है कि वह वैसाही करे जैसाकि उसने चाहा है बल्कि अदालतको अधिकार है कि जैसा उसकी राय में उचित समझ पड़े किसी शर्त के साथ उसको मंसूरन करे; देखोमोधू बनाम गुलवर 9 W. R. 511. हनुमान बनाम बाबूकृष्ण 8 Beng. L. R. 358. तेजपाल बनाम गङ्गा 25 All. 59. मसलन् अदालत यह कह सकती है कि-- इन्तक़ाल करने वाला अपने हिस्से में से वह रक़म उस श्रादमीको अदा करता रहे जिसके नाम इन्तक़ाल किया गया है और जिसके बदले में रक़म ली गयी है; देखो -- महात्रीप्रसाद बनाम रामयाद 12 Beng. L. R. 90 जमुना बनाम गङ्गा 19 Cal 401. इससे स्पष्ट है कि बम्बई और मदरास तथा बंगाल और संयुक्त प्रान्तमें इस आखिरी अन्शमें क़ानूनके अर्थमें मतभेद नहीं है प्रायः सब जगह पर यही है । हर हालत में वह आदमी जिसके नाम इन्तक़ाल किया गया इन्तक़ाल करनेवालेके हिस्सेका हक़दार होता है: देखोदीनदयाल बनाम जगदीश नरायन 3 Cal. 198--208; 4 I. A, 247-255. पिता द्वारा इन्तक़ालमें नीलाम मंसूख नहीं हुआ - यह ठीक नहीं है कि यदि मुआवज़ेका कोई भी भाग, चाहे वह कितनाही कम क्यों न हो नाजायज़ हो, और उसकी पावन्दी मुद्दईपर, इस वजहसे न हो कि वह क़ानूनी आवश्यकता में शुमार न हो, तो मुद्दईको यह अधिकार होगा, कि वह नीलाम को मंसूखकरा देवे। इसके विरुद्ध कितनेही प्रमाण हैं कि यदि मावजेका कोई भी अंश, जो क़ानूनी आवश्यकतामें शामिल न हों बहुतही मामूली हो, तो नीलाम जायज़ रहेगी। एक नज़ीर है जिसमें मावज़े के ६०००) रु० में से २५० ) क़ानूनी आवश्यकताके बाहर पाये गये, किन्तु यह प्रमाणित हुआ कि यह रुपये मुद्दई के पिताको दिये गये थे । तय हुआ कि नीलाम जायज़ रहे और २५० ) रुपये, डिकरीकी रक्रममें वज़ा न किये जांय - बहादुरलाल बनाम कमलेश्वरनाथ L. R. 6 A 591; 90 I. C. 988; A. I. R. 1925 All. 624 ( F. B. ). 69
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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