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________________ दफा ४५७ ] इन्तकाल मंसूरन करना न लगाया हो तो महेशको सादे कर्जेकी तरहपर भी वसूल करनेका अधिकार नहीं रहेगा यानी सब रुपया मारा जायगा। नोट-खरीदारको चाहिये कि अच्छी तरहसे और सब तरहसे मुश्तरका खान्दानी जरूरत जायजको मालूम करके रुपया दे और खबर रख कि वह रुपया खान्दानी जायज काममें खचर्चा होगा वरना बड़े झगड़में फंसना पड़ेगा-ऊपरके उदाहरण देखो-अगर इन्तकाल करने वाला बाप हो तो उसके बेटों को पाबन्द होना पड़ेगा । बम्बई और मदरासकी बात बिल्कुल साफ ऊपर कही जा चुकी हैं। दफा ४५७ मुश्तरका जायदादके इन्तकाल हो जानेपर कौन उज कर सकता है जबकि कोई कोपार्सनर अपने अधिकारसे ज्यादा या हिस्सेसे ज्यादा मुश्तरका जायदादका इन्तकालकरे तो कोई भी दूसरा कोपार्सनर जो इन्तकालके समय मौजूद हो अदालतमें प्रार्थना करके उस इन्तकालको मंसूख करा सकता है, उसके सिवाय कोई भी कोपार्सनर जो इन्तकालके समय गर्भमें हो वह भी पैदा होनेके बाद उस इन्तकालको मंसून करा सकता है इसका कारण यह है कि हिन्दूलॉ के अनुसार गर्भ वाले पुत्रके अधिकार भी बहुत सी सूरतोंमें वही हैं जो जन्मे हुये पुत्रके होते हैं; देखो-सबापा थी बनाम सोमासुन्दरम् 16 Mad 76. रामअन्ना बनाम वेङ्कटा 11 Mad. 246. (दानका केस है) गिरधारीलाल बनाम कन्तूलाल 14 Beng. L. R. 187, 11 I. A. 321. (१) उक्त 11 Mad. 246. में तय हुआ है कि जय, जो मिताक्षराला का माननेवाला है कोई पैतृक जायदाद विजयको दान करदी दानके समय जयका कोई पुत्र नहीं था लेकिन दानकी तारीखले दो मासके बाद एक पुत्र पैदा हुआ उस पुत्रके उज्र करनेपर अदालतने इस दानको मंसून कर दिया क्योंकि दानके समय वह लड़का गर्भमें श। चूंकि यह दानका मामला था इसलिये सबका सब मंसूख कर दिया गया न कि पुत्रके हिस्से तक। (२) मदरास प्रान्तमें जैसाकि मिताक्षरालॉ का अर्थ माना जाता है जय उसका मानने वाला है बिना किसी जायज़ ज़रूरतके उसने कोई पैतृक जायदाद विजयको बेच दी इस बिक्रीके समय जो पुत्र जयका गर्भमें था उसके पैदा होने के बाद उसके उजुर करनेपर यह बिक्री सिर्फ पुत्रके हिस्से तक मंसूख करदी जायगी सबकी सब नहीं यानी बापके हिस्सेकी बिक्री मंसूख नहीं होगी इस किस्मका फैसला 16 Mad. 76. में किया गया है। (३) जय और उसका पुत्र विजय मिताक्षराला मानने वाले हैं मुश्तरका खान्दानमें रहते हैं, जयने कोई पैतृक जायदाद विजयके हिस्से सहित और बिना मंजूरी उसके एक जायज़ कर्जा अदा करनेके लिये महेशके हाथ बेंच दी यह बिक्री सर्वथा जायज़ मानी जायगी विजय उस बिक्रीपर कोई
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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