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________________ दफा ४२४] अलहदा जायदाद ४८७ उसके लाभ उठाने पावे । वह बटवारा करा लेने के लिये मजबूर नहीं किया जा सकता और न है । इस बातकी कोई वजेह नहीं है कि क्यों एक हिन्दू कोपार्सनर जो कि मुश्तरका हक़ोंसे वंचित रखा गया हो, दूसरे कोपार्सनरों के कहनेसे तथा अपनी मरज़ीके खिलाफ बटवारा करानेका दावा करने मुश्तरका खान्दानको तोड़ देने के लिये बाध्य किया जायः देखो-नरानभाई बनाम रनछोड़ 26 Bom 141. रामचन्द्र बनाम रघुनाथ 20 Bom. 467. जब कोई कोपार्सनर मुश्तरका क़ब्ज़ेसे बंचित रखा गया हो तो ऐसे मामले में ऐसी डिकरी होना उचित है कि उसके मुश्तरका क़ब्ज़ेका हक़ क़रार दिया जाय लेकिन इसके सिवाय उस डिकरीमें यह भी होना चाहिये कि उसको वह क़ब्ज़ा दिला दिया जाय । सिर्फ मुश्तरका कब्जेका हक़ करार देनाही काफी नहीं होगा क्योंकि यह उस कोपार्सनरको अपनी मरज़ीके खिलाफ बटवारा का दावा करनेसे बचा नहीं सकता इसलिये कब्ज़ा भी दिला देनेकी डिकरी अवश्य होना चाहिये, देखो-26 Bom. 141, 145. जब किसी कोपार्सनरको उसके दूसरे कोपार्सनर मुश्तरका जायदाद या उसके किसी हिस्से के काममें लाने या लाभ उठानेसे बंचित रखें, तो अदालत उन कोपार्सनरोंको ऐसा करने से रोक सकती है। उदाहरण-(१) ऐसा मानो कि 'महेश' और 'गणेश' एक मुश्तरका खानदानके मेम्बर हैं । महेश घरके किसी ऐसे दरवाजे या सीढ़ीको काममें लानेसे 'गणेश' को रोकता है जो गणेशके कमरेमें जानेका एक मात्र रास्ता है। महेशका यह काम मानो गणेशको वेदखल करना है। अदालत उसको ऐसा करनेसे रोक सकती है कि जिससे गणेश उस दरवाज़े या सीढीको अपने काममें लासके; 19 Mad. 269; 29 Cal. 500. (२) ऐसा मानोंकि-'महेश' और 'गणेश' एक मुश्तरका खानदानके मेम्बर हैं उनकी एक दूकान कलकत्तेमें है, गणेश दूकानमें घुसकर वही खाता देखना चाहता है और दूकानके कारबारमें भाग लेना चाहता है परन्तु महेश उसको रोकता है। अदालत महेशको ऐसा करनेसे रोक सकती है। देखोगनपति बनाम अन्नाजी 23 Bom. 144. (३) अनधिकारके काम--दूसरे कोपार्सनरोंकी मंजूरी बिना, किसी कोपार्सनरको यह अधिकार नहीं है कि वह मुश्तरका खानदानकी किसी ज़मीनपर या उसके किसी हिस्सेपर कोई मकान बनावे या ऐसा काम करे जिससे उस जायदादकी हालत बदल जाय । और न उसको कोई ऐसा काम करनेका अधिकार है कि जिससे मुश्तरका लाभ उठाने में बाधा पड़े । अगर वह ऐसा करे तो अदालतके हुक्मसे रोका जा सकता है। देखो--शिव प्रसाद बनाम लीलासिंह 12 Beng. L. R. 188. गुरुदास बनाम विजय 1.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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