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________________ दफा ४१३-४१४] कोपार्सनरी प्रापर्टी आदिकों का पुत्र और स्वामी के अभाव में ही जिस जायदाद में अधिकार हो सकता है वह 'सप्रतिबन्ध दाय' है क्योंकि पितृव्यरूपसे और भ्राता रूपसे जिस जायदादमें स्वत्वहो वह सप्रतिबन्ध कहलाता है। इसी प्रकार उनके पुत्र श्रादिमेंभी समझना । मिताक्षरामें दो तरहकी जायदाद मानी गयी है एक 'अप्रतिबन्ध' और दूसरी 'सप्रतिबन्ध' । जिस जायदादमें आदमी अपनी पैदाइशसे हक प्राप्त करता है वह जायदाद 'अप्रतिबन्ध' कहलाती है। क्योंकि जायदादका मालिक उस हकमें कोई बन्धन नहीं डाल सकता (बन्धनका अर्थ रुकावट समझना ) इसलिये बाप, दादा और परदादासे पायी हुई जायदाद अपने बेटे, पोते और परपोतोंके लिये अप्रतिबन्ध वरासत होगी, क्योंकि बेटे, पोते, परपोते अपनी पैदाइशसे उस जायदादमें हक्क प्राप्तकर लेते हैं, तथा वह पैदा होते ही अपने बाप, दादा, परदादाके साथ कोपार्सनर हो जाते हैं। वह जायदाद जिसमें पैदाइशसे हक़ नहीं प्राप्त होता लेकिन आखिरी मालिकके मरनेपर प्राप्त होता है वह 'सप्रतिबन्ध' वरासत है। क्योंकि मालिक . के जीतेजी वह हक़ नहीं प्राप्तकर सकते इसलिये जो जायदाद बाप, भाई, भतीजे और चाचाओं आदिको आखिरी मालिकके मरनेके बाद मिलती है वह जायदाद सप्रतिबन्ध कहलाती है। यह रिश्तेदार अपनी पैदाइशसेही जायदादमें हक्क प्राप्त महीं कर लेते किन्तु उनका हक मालिक आखिरीके मरने के बाद पैदा होता है, और जबतक वह नहीं मरता तबतक उन्हे उत्तराधिकार का एक सिर्फ मौक़ा रहता है क्योंकि अगर वह उस समय, उस मालिकके मरनेके समय तक जिंदा रहेंगे तो मौका मिलेगा। मुश्तरका खान्दान-इन्तकाल-प्रतिप्रबन्धके कारण पावन्दी होसकती है। गजाधर वक्ससिंह बनाम बैजनाथ A. I. R. 1925 Oudh. 9. दफा ४१४ अप्रतिबन्ध जायदादमें सरवाइवरशिप होता है ____ अप्रतिबन्ध जायदाद हमेशा सरवाइवरशिप ( देखो दफा ५५८); के हनके साथ जाती है। और सप्रतिबन्ध जायदाद उत्तराधिकारके साथ जाती है लेकिन चार तरहके वारिलोको सप्रतिबन्ध जायदाद भी सरवाइवरशिपके हनके साथ जाती है । वह चार वारिस यह हैं (१) विधवायें (२) लड़कियां ( बम्बईको छोड़कर). (३) लड़कीके लड़के जब वह मुश्तरका रहते हो. (४) लड़के, पोते, परपोते. अगरेज़ी भाषामें 'अप्रतिबन्धदाय को अन् आयस्ट्रक्टेड् हेरीटेज (Unobstructed heritage ) कहते हैं और 'सप्रतिबन्धदाय' को आबस्ट्रक्टेड् हेरीटेज (Obstructed heritage ) कहते हैं। 58
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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