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________________ ४५६ मुश्तरका खान्दान [छठवां प्रकरण xwwwwwwwwwww व्यापारकी साधारण भागीदारी, एक भागीदारके मरनेसे नष्ट हो जाती है देखो 14 Bom. 189, 5 Bom. 38. मुश्तरका खानदानकी जायदादमें कोई कोपार्सनर अपना हिस्सा निश्चित नहीं कर सकता जबतक कि बटवारा नहो जावे । क्योंकि हरएक कोपार्सनरका हिस्सा कमती और ज्यादा होजाना सम्भव है कमती इस वजेहसे हो सकता है कि जब उसके लड़का पैदा हो जाय, और ज्यादा इस वजेहसे होसकता है कि जब उसके कोपार्सनरोंमेंसे कोई मर जाय । इसी तरहके सम्बन्धोंसे कमती और ज्यादा हिस्सा हो जाया करता है इसीलिये कोई कोपार्सनर मुश्तरका खानदानकी जायदादके मुनाफे या भाड़े आदिमें यह कभी नहीं कह सकता कि 'मेरा हिस्सा देदो' क्योंकि वह मुश्तरका खानदानकी जायदाद है, और उसका हिस्सा बटा हुआ नहीं है। देखो-अप्पूधियर बनाम रामा सुव्वा ऐय्यन 11 M. 1. A. 75, मुश्तरका जायदाद-कोपार्सनरी प्रापर्टी ( Coparcenary property ) दफा ४१३ अप्रतिबन्ध और सप्रतिबन्ध वरासत मिताक्षरा-तत्र दायशद्धेन यद्धनं स्वामिसम्बन्धादेवनिमित्तादन्यस्य स्वंभवति तदुच्यते-सच दिविधः।अप्रतिबन्ध सप्रतिबन्धश्च । तत्र पुत्राणांपौत्राणां च पुत्रत्वेन पौत्रत्वेन च पितृधनं पितामहधनं च स्वं भवतीत्य प्रतिबन्धो दायः। पितृव्य भ्रात्रादीनां तु पुत्राऽभावे स्वाम्याऽभावे च स्वं भवतीति पुत्रसद्भावःस्वामिसद्भावश्व प्रतिबन्धस्तदभावे पितृव्यत्वेन भ्रातृत्वेन चस्वं भवतीति स प्रतिबंधोदायः एवं तत्पुत्रादिष्वप्यूहनीयः । इति । दायविभागप्रकरणे ।। भावार्थ-'दाय' शब्दसे वह धन कहलाता है जो स्वामीके सम्बन्धसे दूसरे श्रादभीका धन हो जाय । वह दाय दो प्रकारका है 'अप्रतिबन्ध' और 'सप्रतिबन्ध' । पुत्र और पौत्रोंका पुत्ररूप और पौत्र रूपसे पिता और पितामह के धनमें जो अधिकार है वह अप्रतिबन्धदाय कहलाता है। चाचा और भाई
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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