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________________ दत्तक या गोद [चौथा प्रकरण लिया, पहिली औरत उससे अलहदा रहती थी, पतिके मरने के बाद उसका दत्तकपुत्र उसकी छोड़ी हुई सब जायदादका वारिस हुआ, जायदाद तकसीम के योग्य नथी । बादको दत्तकपुत्र बिना औलादके मरा तब दोनों विधवाओंके बीच मुकदमा चला । एक विधवा बहैसियत बड़ी विधवाके दावीदार थी दूसरी बहैसियत दत्तक पुत्रकी माके । हाईकोर्ट मदरासने फैसला उस विधवा के पक्षमें दिया जो दत्तकपुत्रकी माकी हैसियतसे दावा करती थी। प्रिधीकौसिल में यह फैसला बहाल रहा प्रिवीकौंसिलमें यह भी साफ होगया है कि पुरुष अपनी अनेक स्त्रियोंमेंसे एकहीको गोद लेनेका अधिकार दे सकता है-देखो अन्नापुरनाई नचियर बनाम फोरवेस 18 Mad. 277; 26 I. A.. 246; S C. 23 Mad. 1. दफा २६६ सौतेलीमा सौतेले बेटेकी वारिस नहीं होती सौतेले मा सौतेले बेटेकी वारिस नहीं हो सकती यह राय बङ्गाल और मिताक्षरा स्कूलोंमें मानी गई है उड़ीसा मिताक्षरा का अर्थ यह लगाया गया कि जो मिताक्षरामें सिर्फ मा का हिस्सा स्वीकार किया गया है सौतेली माका ज़िकर नहीं किया गया तो ऐसा मानना चाहिये कि मा शब्द सौतेली माके सम्बन्ध में भी उसी तरह पर लागू होता है। नीचेके मुकद्दमेसे मालूम होता है कि इसी किस्मका एक झगड़ा मिथिला प्रांतमें उठा जिसमें बङ्गाल हाई कोर्टने तजवीज़ कियाकि दायभाग और मिताक्षराके अनुसार सौतेलीमा सौतेले लड़केकी वारिस नहीं हो सकती-लाला जोती बनाम मिस्टर दुर्रानी B. L. R. Sup. 67; S. C. Suth Sp. No. 173. रामानन्द बनाम सरजियानी 16 All. 221. बम्बई प्रांतमें सौतेलीमा गोत्रज सपिण्ड की हैसियतसे समझी जाती है इस लिये उसका हक बड़ी दूर चलकर पहुँचता है देखो-केसरबाई बनाम बलाव 4 Bom. 188; रसूबाई बनाम जुलेकाबाई 19 Bom. 707, मदरासमें भी यही तय किया गया है कि सौतेलीमा पतिके सपिण्डके बराबर वारिस नहीं होती देखो कुमारवालू बनाम विरना 5 Mad. 29; मुदाअम्मल बनाम बिंगलक्ष्मी 32; मारी बनाम चिन्नाश्रमल 8 Mad 107. सिर्फ पांडीचेरी में यह सिद्धांत नहीं माना गया वहांपर मनुके बचनके अनुसार सौतेलीमाका हक्क दूसरी माताओंके बराबर रखा गया है । महर्षि मनुका बचन है कि जब कई एक स्त्रियोंके बीचमें एक लड़का पैदा हो तो शेष सब त्रियां पुत्रवती कहलायेंगी इसीसे सबका वह पुत्र माना जायेगा और सब स्त्रियां उस पुत्रकी माता कहलायेंगी। दफा २६७ सौतेलीमाकैौन कह लायेगी, सौतेला बेटा सौतेली मा का वारिस न होगा . सौतेलीमा कौन कह लायेगी इस बातका एक अच्छा उदाहरण नीचे की नज़ीरमें दिया गया है। एक भादमीके अनेक त्रियां हैं और उस भादमी
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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