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________________ २२० दत्तक या गोद [चौथा प्रकरण होमेपर सपिंडता चली जाती है भाई श्रादिके पुत्र समान गोत्र और लड़की का लड़का, तथा माताकी बहनके लड़के आदि असमान गोत्र कहलाते हैं क्योंकि विवाह होने बाद कन्याका गोत्र बदल जाता है । असपिंडसे सात पूर्वजोंके भीतरका मतलब नहीं समझना, सपिंडके बाद सगोत्र होता है और सपिंडकी दशामें वह सगोत्र-सपिंड कहलाता है सापिंडका दूसरा अर्थ यह भी है कि जहांतक शरीर सम्बन्धी पिंडहो वह सपिंड है । इस तरह पर पिता के वंशमें तीन पीढ़ी तक सपिंड कहाता है यानी बाप, दादा और परदादा । परदादाके वाद तीन पीढ़ीका शरीर सम्बन्धी सपिंड निवृत्त हो जाता है वाद वह समान सगोत्र सपिण्ड कहलाता है । गोत्रका अर्थ संतति (औलाद ) किया गया है कालिका पुराण में कहा गया है कि विधि पूर्वक और अपने गोत्रके लड़के जव दत्तक लिये जाते हैं तब वह लड़के पुत्र बन जाते हैं यद्यपि वह दूसरे पुरुषके वीर्यसे पैदा हुए हैं । गोत्र का अर्थ सन्तति इसलिये किया गया है कि अमर कोषमें सन्तति, गोत्र जनन, कुलानि, अभिजन और अन्वय, गोत्रके पर्याय वाचक शब्द हैं । गोत्रसे, गोत्र का सम्बन्ध नहीं लिया जायगा इसलिये अपने गोत्र से गोद लेना चाहिये, असपिण्डका लड़का गोद लेनेके बारेमें जो कहा गया है कि वह सपिण्ड नहीं हो सकता । इस कहने से यह मतलब नहीं है कि गोद लेने वाले की पांचवीं या सातवीं पीढ़ी के अन्दर ही गोद लिया जाय । मानव धर्मशास्त्रमें कहा गया है कि असमान गोत्रके लड़केके गोद लेने में असली बापके गोत्रका धन दत्तक पुत्रको नहीं मिलेगा इसी बातको बृहन्मानव यों कहते हैं कि दत्तक और क्रीत पुत्र आदि लड़कोंकी सपिण्डता उनके असली बापके साथ होती है जो पांचवीं और सातवीं पीढ़ी में समाप्त हो जाती है । दत्तक पुत्रकी सपिण्डता दत्तक लेने वालेके साथ ऐसी होती है जैसे किसी लड़केका गोत्र न मालूम हो तो उसका गोत्र वही समझो जो उसके पालने वालेका है। मुख्य बात यह है कि सपिण्ड में यदि गोद न मिले तो असपिण्ड से भी लड़का गोद लिया जा सकता है असपिण्डसे यह मतलब है कि सात पीढ़ीके बाहर । असपिण्ड, दो प्रकार के हैं एक समान गोत्र वाले दूसरे असमान गोत्र वाले । ऊपर कही हुई वाक्योंका स्पष्ट अर्थ यह है कि समान गोत्र सपिण्ड मुख्य है अर्थात् जहां तक हो सके अपने गोत्रमें और अपने सपिण्डमें लड़का गोद लिया जावे। अगर समानगोत्र सपिण्डमे लड़का न हो तो असमान गोत्र सपिण्डका लड़का गोद लिया जाय । देखो-असमान गोत्र सपिण्ड (गोत्र दूसरा हो और सपिण्ड हो) और समान गोत्र असपिण्ड ( अपने गोत्र का हो और सपिण्ड न हो) इन दोनों का दर्जा वराबर है एक एक बात दोनोंमें पायी जाती है इसलिये दोनों समान हैं परन्तु इन दोनोंमें भी गोत्र चलाने वाले पूर्व पुरुष के मुताबिले में सपिण्ड के चलाने वाले पुरुषकी श्रेष्ठता है और वह नज़दीकी है इसलिये यह कहा गया है कि
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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