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________________ दफा १७५] साधारण नियम २२१ असमान गोत्रके होने पर भी सपिण्डका लड़का गोद लेना चाहिये क्योंकि वह सपिण्ड के ख्याल से नज़दीकी है नानाके गोत्र में सपिण्डके लड़केके होनेपर भी, अपने गोत्रके सपिण्डमें गोद लेना चाहिये यदि उसमें न हो तो असपिण्ड में यदि उसमें भी न हो तो समानोदकमें गोद लेना चाहिये समानोदक चौदह पीढ़ी तक रहता है, यदि चौदह पीढ़ी तक भी कोई लड़का न हो तो असमानोदक यानी सगोत्रमें लेवे, सगोत्र इक्कीस पीढ़ी तक रहता है यदि इक्कीस पीढ़ीमें भी लड़का न होतो, असमान गोत्र और सपिण्डमें लेवे । इन वाक्योंका तात्पर्य यह है कि पहला दूसरेकी अपेक्षा कमसे नज़दीकी बताया गया है, वशिष्ठने भी कहा है कि पुत्र ऐसा गोद लिया जाय जिसके बांधव दूर न हों अर्थात् सन्निहित सपिण्डका लड़का गोद लिया जाय, सन्निहित सपिण्ड दो प्रकार का है एक गोत्र से दसरा गोत्रमें थोड़ी पीढ़ियों के अन्तर का, इनमें सगोत्रके मुक़ाबिलेमें थोड़ीपीढ़ियोंके अन्तरका लड़का लेना मुख्य है जब ऐसा पुत्र न हो तो बहुत पीढ़ियों के अन्तरका और सगोत्र सपिण्ड हो तो अच्छा होगा, अगर ऐसा भी लड़का न मिले तो असमान गोत्र सपिण्ड का लेना। ऐसा भी न हो तो बन्धु सन्निकृष्ट सपिण्ड हो अर्थात् भाइयोंके नज़दीकी सपिण्डका हो चाहे वह अपना सपिण्ड न हो, वह भी दो प्रकार का है एक सगोत्र से दूसरा सगोत्र और थोड़ी पीढ़ियों के अन्तर से, यद्यपि वह अपना असपिण्ड है परन्तु समानगोत्र होनेसे और भाइयों के सम्बन्धसे थोड़ी पीढ़ियों का अन्तर होनेसे योग्य कहा गया है यह लड़का सपिण्डों का सपिण्ड हुआ क्योंकि अपने सपिण्डमें सात पीढ़ी शामिल हैं और सात पीढ़ी के श्रास्त्रीर पुरुष यानी सातवें पुरुषसे जब उसका सपिण्ड और सात दर्जे ऊपर चलेगा तो वह अपने से चौदह दर्जे और उस पुरुषसे सात दर्जेपर रहेगा इस लिये ऐसा सपिण्ड सपिण्डोंका सपिण्ड कहलाता है। अगर सपिण्डों के सपिण्डमें भी लड़का न हो तो अनेक पीढ़ियों के अन्तर में और सगोत्रमें लड़का गोद लेना । सपिण्ड और समानोदकमें लड़केके न होने पर समान गोत्रमें इक्कीस पीढ़ीतक गोद लिया जाय, अगर ऐसा भी न हो तो असमान गोत्र असपिण्डमें भी लेवे । वसिष्ठके कथनानुसार जब किसी दूर वान्धवमें सन्देह हो जाय और यह न मालूमहो सके कि वह किस गोत्रका है तथा उसका सपिड्य कैसा है तो उसे शूद्रकी तरह माने यानी शामिल नकरे इस स्थानमें 'सन्देह' शब्दका यह अर्थ लिया गया है कि उसकी जाति तथा शीलादि गुणका जब पता न लगता हो । असपिण्ड और असमान गोत्रका सबसे हीन दर्जा दिया गया है। मनुका यह मतलब है कि जब लड़का सपिण्ड में अथवा असपिण्ड में नहो हो तो फिर नहीं लेना चाहिये । सब लोगों को अपनी अपनी जाति में लड़का गोद लेना चाहिये दूसरी जातिका लड़का गोद न लेवे इससे यह बात मालूम होती है कि चाहे सपिण्डहो अथवा असपिण्डे परन्तु दोनों सूरतोंमें दत्तक
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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