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________________ Son & Sonship. पुत्र और पुत्रत्व तीसरा प्रकरण पुत्र और पुत्रों के दरजों के जानने की जरूरत बहुत करके इस लिये है, कि प्राचीन काल में आठ प्रकार के विवाह ( देखो दफा ४० ) होते थे। मगर अब कानून के असर तथा प्रथा के बदल जाने से उतने नहीं होते फिर भी अनेक किस्म की स्त्रियों से जो पुत्रों की पैदाइश होती है, वह पुत्र कहां तक माने जायंगे तथा उनमें किससे किसको श्रेष्ठता. है, कानूनमें कितनी किस्म के पुत्र माने गये हैं। कौन जायज़ और कौन नाजायज है, उत्तराधिकार पानेके अधिकारी कौन है आपस में बटवारा उनके दों के अनुसार कैसा होगा, इत्यादि बातोंका वर्णन इस प्रकरण में किया गया है । पुत्र और पुत्रों के दरजे दफा ८१ पुत्र की आवश्यकता महर्षि मनुने कहाहै, कि नरकका नाम 'पु' है और जो नरकसे पिताको बचाता है इस लिये उसका नाम स्वयं ब्रह्माजीने पुत्र रखा है। मनुष्य पुत्र होनेसे सब लोकों को प्राप्त होता है, पौत्र होनेसे अनन्त समय तक स्वर्गका सुख भोगता है और प्रपौत्रसे सूर्यलोक को पाता है । धर्मशास्त्रका सिद्धांत है कि बिना पुत्रके सद्गति प्राप्त नहीं होती तथा पितरोंके ऋणसे छुटकारा नहीं पाता । अत्रिस्मृति में कहा है कि पिता, जीवित पुत्रका मुख देखते ही पितरों - (१) पुन्नाम्नो नरकाधस्मानायते पितरं सुतः । तस्मात्पुत्र इति प्रोक्तःस्वयमेव स्वयंभुवा । अ०६-१३८, (२) पुत्रेणलोकाञ्जयति पौत्रेणानन्त्य मश्नुते । अथ पुत्र स्य पौत्रेणबनस्याप्नोतिविष्ठपम् । अ०६-१३७. (३) पितापुत्रस्य जातस्य पश्येच्चेञ्जीवितोमुखम् ऋणमस्मिन्सं नयति अमृतत्वं चमच्छति । ५३.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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