SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३० पुत्र और पुत्रत्व [ तीसरा प्रकरण के करज़ से छूट जाता है और मरने पर उसे स्वर्गमें स्थान मिलता है। बौधायनने भी इसकी पुष्टि की है-ब्राह्मणका बालक तीन कोंसे युक्त होकर जन्म लेता है ब्रह्मचर्य साधन करनेसे ऋषि ऋण, यज्ञ करनेसे देवऋण और पुत्र उत्पन्न करनेसे पितृऋणसे छूट जाता है। यह बात सभी स्मृतिकारोंको मान्य है कि पुत्र होनेसे पिताको स्वर्ग मिलता है और मुक्त हो जाता है। एवं जिस मनुष्यके पुत्र नहीं होता उसे स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती और पितरों का करज़दार बना रहता है। देवकर्म, और पितृकर्म. बिना पुत्रके नहीं कायम रह सकता । अतएव पुत्रकी कामना हिन्दूधर्मानुसार आवश्यक है। पुत्रसे पिताकी आत्माको शांति पहुंचती है तथा उसका वंश आगे चलता है और नाम संसारमें कायम रहता है, इसी कारण हरएक हिन्दूपुरुषको सन्तान पैदा होनेकी प्रबल इच्छा रहा करती है। इसी हेतुसे पुरुष विवाह करता है जब उसके सन्तान नहीं होती तब दसरा और तीसरा विवाह करता है। तोभी कभी कभी अभाग्यवश पुत्रोत्पत्तिसे निराश रहना पड़ता है। इसी आशा में वृद्धा वस्था आजाती है, इन्द्रियां शिथिल और मनोवेगकी प्रबलता हो जाती है तब पुरुष अपने को संतान उत्पन्न करनेके अयोग्य समझ विवश होकर अनेक प्रकारके उपाय सोचने लगता है, क्योंकि उसे भय होता है, कि कहीं उसके धर्मकृत्य और उसके वंश तथा नामके चलनेका मार्ग बन्द नहोजाय । वह उपाय एक ही है। वह यह कि दूसरे पुरुषके लड़के को अपना लड़का बनाले । इस चालको 'गोदलेना, कहते हैं, और इस चालके अनुसार जो लड़का गोदलिया जाता है, उसे दत्तकपुत्र (मुतबन्ना-खोला ) कहते हैं इस नकली लड़केको धर्मशास्त्रकारोंने बारह प्रकार के लड़कोंके भीतर माना है और संपत्ति में इस पुत्रका भाग कायम किया है। दत्तक पुत्रसे धर्मकृत्य वंश तथा नाम 'उसी प्रकार से चलना माना गया है, जैसे असली लड़केसे । दत्तकपुत्र होनेसे पुरुष पुत्रवान् कहलाता है और वह सगे लड़के की तरह पिता तथा पिता के पितरोंको पिण्डदान श्रादि से तृप्त करता है और पिता की संपत्ति का वारिस होता है। पुत्रोंका कानूनी होना-सन्तान के कानूनी होने की एक जांच यह है कि उसे अन्तिम संस्कार और श्राद्ध करनेका अधिकार हो । श्राद्धकी रस्म का महत्व कानूनी नुक्ते निगाह से बहुत अधिक है। पिण्डों के देने की योग्यता का होना, वारिस होने की एक जांच है। महाराज कोल्हापुर बनाम सुन्दरम् अय्यर 48 M. I. A. I. R. 1925 Mad. 497. - (४) जायमानोवे ब्राह्मणस्त्रिभिर्ऋणी जायते ब्रह्मचर्येणर्षिभ्यो यज्ञेन देवेभ्यः प्रजयापितृभ्य इति । ६.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy