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________________ विवाह 'प्रकरण Bom. L. R. 708; 22 Mad. 512. इस ऊप के मुक़द्दमे में यह माना गया कि जब लड़की वालोंने लड़कीके बदले में नकद धन ले लिया तो यद्यपि विवाहके सब कृत्य ब्राह्मविवाहके ढङ्गसे हुए थे परंतु फिर भी वह विवाह आलुर ढङ्गका माना गया । मदरासके मुकदमे में माना गया कि जो जातियां हवन और 'सप्तपदी' कृत्यको आवश्यक नहीं समझतीं वे यदि अपने विवाहमें ऐसे कृत्य न करें तो इस सबबसे उनका विवाह नाजायज नहीं हो सकता। विवाहके ढङ्गमें कोई दोष है या नहीं, केवल यही देखकर यह निश्चित किया जाता है कि कोई विवाह उचित ढङ्गका है या अनुचित ढङ्गका अर्थात् ऐसे मामलों में विवाहका ढङ्ग नहीं बल्कि उस ढङ्गकी सिफत देखी जाती है; देखो-मूसाहाजी बनाम हाजीअब्दुल 7 Bom. L. R. 447. गांधर्वविवाह-क्षत्रियोंमें गांधर्व विवाह सन् १८१७ ई० में बंगाल की सदर दीवानी अदालतने जायज़ माना था । सन १८२०. और सन १८५३ ई० में भी ऐसा ही माना गया परन्तु आजकल ऐसे विवाह बहुत ही कम होते हैं । इलाहाबाद हाईकोर्टने इस गांधर्व विवाहकी पृथाको अनुचित माना है वह इसे बिठलाई हुई औरतके समान मानते हैं देखो भवानी बनाम महाराज सिंह 3 All. 738. एक दूसरे मुकदमे में इलाहाबाद हाईकोर्टने कहा कि प्राचीन कालमें शास्त्रानुसार चाहे कुछ भी होता रहा हो परन्तु वर्तमानकालमें ब्राह्मण और क्षत्रियके परस्पर विवाह इन प्रान्तोंमें जायज़ नहीं माना जासकता और ऐसे विवाहसे उत्पन्न सन्तान औरस नहीं मानी जा सकती; देखो-बदाम कुमारी बनाम सूरजकुमारी 28 Ail 458. और पंजाबमें भी देखो-प्रेमन बनाम संतराम 77 P. L. R. ( 1906). गांधर्व कब माना जाता है--हिन्दुओंमें शादीके जायज़ होनेके लिये यह आवश्यक है कि शादीकी रसमें अदाकी जांय; अन्यथा विवाह गांधर्व विवाह या युग्मके विषय के पूर्तिकी सामग्री समझा जायगा । महाराजा कोल्हापुर बनाम एस० सुन्दरम अय्यर 48 M.1; A.I.R 1923 Mad. 497. मदरासमें यह माना गया कि विवाहका मुख्य कृत्य हवन यदि करलिया गया हो तो गांधर्व विवाह जायज़ होगा; देखो-बिन्दामन बनाम राधामनी 12 Mad. 72. बम्बई में एक राजपूत पुरुष और ब्राह्मण स्त्रीके परस्पर जो विवाह हुआ जायज़ नहीं माना जायगा और स्त्रीका दावा वैवाहिक हकके पाने के वास्ते जो हुआ था खारिज कर दिया गया; देखो-लक्ष्मी बनाम कल्याणसिंह 2 Bom. L. R. 128 पंजाब चीफकोर्टने हालके एक मुक़द्दमेके खास हालात परयह माना कि 'चादर अंदाज़ी' से किया हुअाराजपूत पुरुष और महाजन स्त्री का विवाह जायज़ है, यह भी कहा कि यदि वह महाजन, वैश्य माना जाय तो भी जायज़ होगा; देखो-खैरो बनाम फकीरचन्द 57 P. R. ( 1909 ) इस मुक़दमे की खास सूरतपर ऐसा फैसला किया गया है इसलिये यह फैसला
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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