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________________ दफा ४२] विवाहके मेद आदि www आम नहीं हो सकता । यह ध्यान रहे कि पंजाबमें कस्टमरी लॉ लागू माना जाता है। दफा ४२ विवाहके विषयमें अदालतका निश्चित सिद्धान्त (१) जबतक इसके विरुद्ध साबित न किया जाय, तबतक ऊंची जातों के विवाहोंके मामले में अदालत पहिले सेही यह मान लेगी कि विवाह उचित रीतिसे और उचित ढङ्गका हुआ था अर्थात् ब्राह्म विवाह हुआ था जो पक्षकार यह कहता हो कि बाल विवाह नहीं हुआ तो बारसुबूत उसी पक्षपर होगा; देखो-ठाकुर देयी बनाम रायबालकराम 11 M. I. A. 139. गोचाबाई बनाम शाहाजीराव मालोजी राजे भोसले 17 Bonu. 114. जगन्नाथ प्रसाद बनाम रंजीतसिंह 25 Bonu. 354-356. (२) और देखो मनुजीने ब्राक्ष विवाह ही सबसे श्रेष्ठ माना है, तथा सभी स्मृतिकारोंने इसको श्रेष्ठता दी है। वर्तमान समयमें यही विवाह प्रचलित है इसलिये अदालतने निश्चित किया है कि पहिले हर एक मामलेमें यह मान लेना चाहिये कि वह ब्राह्मविवाह हुआ था; देखो मनु-- दशपूर्वान्परान्वंश्यानात्मानं चैकविंशकम् ब्राह्मीपुत्रः सुकृतकृन्मोचयेदेनसः पितृन् । ३-३७ ब्राह्मविवाहकी स्त्रीसे उत्पन्न पुत्र पहिलेकी १० पीढ़ियों और पीछेकी१० पीढ़ियों को, तथा अपनेको, इन २१ पीढ़ियों को पवित्र करता है और पितरों का उद्धार कर देता है। इसी विषयमें संवर्त और व्यासस्मृति भी देखो अलंकृत्य तु यः कन्यां वराय सहशायवै ब्राह्मेण तु विवाहेन दद्यात्तां तु सुपूजिताम् । १०-६१ स कन्यायाः प्रदानेन श्रेयो विन्दति पुष्कलम् साधुवादं सवैसद्भिःकीर्तिप्राप्नोतिपुष्कलामासंवर्त१०-६२ ब्राह्मोदाह विधानेन तद्भावेऽपरो विधिः। व्यास१४-५ अर्थात् जो मनुष्य ब्राह्मविवाहके विधानसे कन्या को अलंकृत तथा पूजित करके उसके समान वरको कन्यादान करता है उसका बड़ा कल्याण होता है, सज्जन लोग उसकी प्रशंसा करते हैं और उसकी बड़ी कीर्ति फैलती है। व्यासजी कहते हैं कि ब्राह्मविवाहके विधानसे विवाह करना चाहिये, इसके अभावमें अन्य प्रकार के विवाहोंकी विधि कही गयी है। ब्राविह्मदाहकी
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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