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________________ दफा ४१ ] विवाहके भेद आदि कन्याकी क़ीमत स्वरूपमें किये गये और इस प्रकारका विवाह संस्कार, श्रसुर संस्कार माना जाता है । अनाय्योंके मध्य इस प्रकार रुपया लेनेका खाज होने से उनके मध्यके संस्कार ब्राह्म संस्कार नहीं होते । सामू असारी बनाम अनाची अय्यर 22 L.W.462; AI.R. 1926 Mad 37; 49M.L.J. 554 श्रासुर संस्कार -- आसुर रीतिके विवाहका निचोड़, कन्या की क़ीमत लेना है और जहां पर कि एक खान्दानकी कन्या, दूसरे खान्दानके वरके साथ व्याही जाती है तथा इसके विपरीत कन्याके खान्दानका लड़का, वरके खान्दानकी कन्याके साथ व्याहा जाता है, तो विवाह नाजायज़ नहीं होता । पञ्जाबराव बनाम आत्माराम 87 1. C. 1018. ५३ आसुर प्रथा -- शादीके खर्वौका दिया जाना-रवाज उसका असर - सामू असारी वनाम अनाची अम्बल 91 I. C. 561; AIR 1926 Mad. 37. आसुर प्रथा -- उसकी जांच-पञ्जाबराव बनाम आत्माराम AIR 1926 Nag. 124. विवाहके प्रत्येक मामलों में अदालतकी तरफसे हिन्दूलों के अनुसार पहिले यह मान लिया जायगा कि हरएक विवाह ब्राह्म विवाहके ढंगसे हुआ है; देखो - मुसम्मात ठाकुर देयी बनाम रायबालक 11 M. I. A. 139 गोजाबाई बनाम श्रीमंत साहाजीराव 17 Bom. 114. बम्बई में यह माना गया है कि नीच जातियोंमें आसुर ढंगका विवाहही आमतौरसे प्रचलित है; देखो-विजयरंगम् बनाम लक्ष्मण 8 Bom. H. C. R. 144; लेकिन उनमें ऊंचे ढंगका विवाह भी वर्जित नहीं है देखो - जैकिशनदास बनाम हरीकिशन 2 Bom 9 और शूद्रोंमें भी अगर दोनों पक्षकार प्रतिष्ठित घरानेके हों तो अदालत यही निश्चित करेगी कि ऊंचे ढंगका विवाह हुआ है; जगन्नाथ बनाम नारायण 12 Bom. L. R. 545. आसुर विवाहका खास लक्षण यह है कि कन्याके पिता या उसके पक्षवालोंने धन लेकर कन्या दी हो, इसे बम्बईकी तरफ 'पल्ला" कहते हैं 'पल्ला' वह नक़द धन या माल है जो दुलहिन को भविष्य में काममें लानेके लिये दिया जाता है और सिर्फ इस कारण से कि वह नक़द या माल दुलहिनके बापने या दूसरे किसी रिश्तेदार ने दिया है, इस बातसे यह नहीं माना जायगा कि दुलहिनकी विक्री हुई जो आसुर विवाहका मुख्य लक्ष्ण है; देखो अमृतलाल बनाम बापूभाई Bom H. C. P. J. (1887) 207. विवाह किस ढंगका हुआ यह निर्णय करनेके लिये यह नहीं देखना चाहिये कि विवाहके समय क्या क्या धर्मकृत्य हुएथे, बल्कि यह देखना चाहिये कि लड़की के कुटुम्बियोंने लड़कीके बदले में कुछ रक़म ली या नहीं क्योंकि आसुर विवाहका मुख्य लक्ष्ण यही है; देखो - बुम्नीलाल बनाम सूरजराय 11
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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