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________________ विवाह ५२ [दूसरा प्रकरण wwwim ४-६, गौतम स्मृति ४ अ० ३, वृहत् पाराशरीय धर्मशास्त्र ४ अ० ३-११, बौधायन स्मृति १ प्रश्न, ११ अ० २-९; नारद स्मृति १२ विवाद पद ४०-४४. दफा ४१ आठ प्रकारके विवाहों में उचित और अनुचित ब्राह्मविवाह--ऊपर कहे हुए प्रथमके चार विवाह (ब्राह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य ) उचित माने जाते हैं और पिछले चार ( आसुर, गांधर्व, राक्षस, पैशाच ) अनुचित । ऊंची जातोंमें ब्राह्मविवाह ही प्रचलित है परंतु इसके सिवा और भी कई तरहके विवाह माने जाते हैं किंतु आजकल ब्राह्मविवाह ही कानूनी विवाह माना जाता है। ब्राह्मीति-विज्ञानेश्वरकी आठ प्रकारकी शादियोंकी तक़सीम तर्कके अनुसार पूर्ण नहीं है । यह सम्भव है कि शादियोंकी किस्म उनकी मिश्रित प्रणालीके श्रनुसार होसके,किन्तु उनका उन ८ तक़सीमों के अनुसार होना सम्भव नहीं है। विवाहकी ऐसी प्रणालियां हो सकती हैं जो जायज़ हों। उसी प्रकार शादियों के कानूनी तरीकेभी हो सकते हैं, जैसा कि विधवाओंका पुनर्विवाह एक्ट है। यह नहीं कहा जा सकता, कि शादीके ब्राह्म तरीकेमें विधवाके पुनर्विवाहका स्याल नहीं किया जासकता। मु० किसनदेई बनाम शिवपल्टन 90 P. C. 358; L. R. G A. 557; 23 A. L. J. 981. शास्त्रानुसार ८किस्मके विवाहोंमे से, यह कानून द्वारा स्वीकार कर लिया गया है कि ब्राह्म और आसुर क़िस्मको छोड़कर शेष सब अप्रचलित हैं। महाराजा कोल्हापुर बनाम एस० सुन्दरम अय्यर 48 M. 1; A. I. R. 1925 Mad. 497. किसी विरोधी शहादतके न होनेकी सूरतमें यह माना जाता है कि विवाह मान्य प्रणाली द्वारा हुआ है। उमराव कुंवर बनाम सर्वजीतसिंह 85 I. C. 6.8; A. I. B. 1925 Oudh 620. जाति--सगोत्रविवाह--जहां तक कि द्विजातियोंका सम्बंध है बिल्कुल एक ही गोत्र और प्रवरकी मनाही है और यदि कोई ऐसी शादी की जाती है तो वह नाजायज़ होती है। किन्तु शूद्रोंके मध्य इस नियमकी पाबन्दी नहीं है महाराजा कोल्हापुर बनाम एस० सुन्दरम अय्यर 48 Mad. 1; A. I. R. 192:5 Mad. 497. . प्रासुर विवाह, अनार्य ढंगका विवाह है प्राचीन आर्योने इसे पसन्द नहीं किया पर बहुत समयसे अनायॊमें प्रचलित होनेके कारण जारी रखा गया दक्षिण हिन्दुस्तानके शूद्रोंमें प्रायः ऐसा विवाह हुआ करता है मदरासके ब्राह्मणों में भी ऐसा विवाह जायज़ माना गया है। देखो विश्वनाथन् बनाम स्वामीनाथन् 13 Mad. 83. - जब विवाह के समस्त व्यय, जो कि हिन्दू विवाह संस्कारके लिये श्रावश्यक होते हैं वरकी ओरसे किये जाय, तो यह समझा जाता है कि वह व्यय
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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