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________________ फा १६-१२२] धर्मादेकी संस्था नियम awww लॉ के अनुसार विरुद्ध है तथापि हिन्दूलॉमें जायज़ माना गया है। देखो-14 M. I. A. 289-301-302; 12 Bom. H. C. 214. भूपतिनाथ बनाम रामलाल 37 Cal. 128, 136, 137, 141. में कहा गया कि धार्मिक कामोंमें जो दान किया जाता है वह केवल कानूनन जायज़ ही नहीं माना जाता बल्कि हिन्दू सिद्धांतानुसार वह काम बड़ा सुन्दर और प्रशंसनीय भी है। धर्मादेके लिये दी हुई जायदाद के मुनाफेसे धर्मादा कायम करने वाले को चाहिये कि अपनेको अवश्य सब तरह अलग कर ले। इस विषय पर मिस्टर मेन कहते हैं कि " अगर कोई आदमी अपनी जायदाद से कोई मंदिर बनाये या धर्मादा कायम करे और रस जायदाद का प्रवन्ध अपनेही हाथोंमें रखे तो धर्मादा का इस तरहका दूस्ट मुकम्मिल ट्रस्ट नहीं कहा जा सकता जब तक वह आदमी जीवित है तब तक इस प्रवन्धसे भलेही समाजका लाभ हो परन्तु फिर भी इस प्रवन्धका जारी रहना उस एक आदमी की खुशी पर निर्भर है। उस आदमी के मरनेके बाद भी झगड़ा है क्योंकि वह जायदाद वारिसोंके हाथमें या दिवालिया अदालतमें जा सकती है। इसके सिवाय यह भी हो सकता है कि वह आदमी स्वयं जब चाहे उस धर्मादेका खर्च कम कर दे या उसे बिल्कुल बन्द करदे" । सारांश यह है कि उस जायदादकी हैसियत में फरक पड़ेगा अर्थात् वह जायदाद धर्मादेकी नहीं बन जायगी बल्कि धर्मादे में लगाया जाना मालिककी खुशी पर रहेगा, देखो-मेन हिन्दुलॉ7 Ed. P. 583, नोट--15 B. L. R. 1763 20 W. R.C. R. 95. दफा ८२१ सार्वजनिक आरामका हक केवल सार्वजनिक आरामके हकके लिये भी धार्मिक या खैराती धर्मादा कायम किया जा सकता है, देखो-जगमनी दासी बनाम नीलमणि घोसलं 9 Cal. 75; 11 Cal. L. R. ii02 में कहा गया कि बहुतेरे लोग मरते हुए प्राणीको किसी दरिया या नदी के घाट पर जाकर रख देते हैं, ऐसे घाट का इस काम के लिये नियुक्त किया जाना या बनयाना भी सार्वजनिक आरामके हक्नका धर्मादा है। दफा ८२२ किसी मुदतके बाद धर्मादा कायम करना अगर कोई ऐसा कहे कि मेरी जायदाद अमुक श्रादमीके जीवन समाप्त होनेके बाद अमुक धर्मदेमें लगादी जाय तो इसमें कानूनन् कुछ हर्ज़ नहीं पड़ता, देखो-30 All. 288. 127
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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