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________________ धार्मिक और खैराती धर्मादे [ सत्रहवां प्रकरण दफा ८२३ सार्वजनिक और निजके धर्मादेका भेद धर्मादेके सम्बन्धमें पहले यह समझ लेना बहुत ज़रूरी है कि वह सार्वअनिक धर्मादा है अथवा निजका । इन दोनों में भेद यह है कि जो सार्वजनिक धर्मादा होता है वह किसी धार्मिक या खैराती कामों के लिये होता है और उसमें सम्पूर्ण जन समुदायका लाभ शामिल रहता है तथा वे सब उससे लाभ उठानेका अधिकार रखते हैं । निजके धर्मादेमें, धर्मादा स्थापन करने वालेका कुटुम्ब और उसके रिश्तेदार तथा मित्र केवल यही निश्चित संख्याके लोग लाभ उठा सकते हैं और इन्हींके लाभ उसमें शामिल रहते हैं। देखो-23 Bom. 659; 14 M. 1; 15 B. L. R. 167. जब किसी आदमीने कुटुम्बकी देवमूर्तिके हकमें निजकाधर्मादा कायम किया हो तो वह कुटुम्बकी देवमूर्ति और उसमें लगा हुआ धर्मादा, देवमूर्ति का नित्य विधि पूर्वक पूजन होने के लिये दूसरे खानदानमें इन्तकाल कर सकता है। किन्तु ऐसा करने में शर्त यह है कि खानदानके सब मेम्बरोंकी सम्मति प्राप्त करली गयी हो और वह इन्तकाल उस देवमूर्तिके पूजन आदिके लाभके लिये ही किया गया हो, देखो-17 Cal. 557; 13 C. W.N. 242. निजके धर्मादेमें जो जायदाद लगादी जाती है चाहे वह किसी देवमूर्तिमें भी लगी हो खानदानके सब मेम्बरोंकी सम्मति होनेसे वह जायदाद फिर खानदानी जायदाद बनाली जा सकती है और फिर उसे सब लोग आपसमें बांट ले सकते *देखो-2 Cal.341;4 I. A.52; 11 Indian. Cases. 9473 9 Indian. Cases. 950; 15 C. W. N.126; 12 C. W. N. 983 16 0.W. N. 29. "खानदानके सब लोग" इस कहनेसे यहांपर यह अर्थ है कि खानदान के सब परुष और वे सब स्त्रियां जिनके भरण पोषणका लाम धर्मादेमें शामिल है, देखो-सरकारका हिन्दूला 4 ed P. 491, 492. जिनके धर्मादेमें यदि पसी कोई बदइन्तजामी हो जाय तो वह क्षमाकी जा सकती है जैसीकि सार्वजनिक धर्मादेमें नहीं की जा सकती, देखो-20 M. 398. तथा यह भी ध्यान रहे कि धार्मिक धर्मादेका कानून ( Act No. 20 of 1863 ). निजके धर्मादे से लागू नहीं होता यही बात 19 Cal. 275. काले मामले में मानी गयी। निज के धर्मादेका सामान्य चिन्ह यह है कि खानदानकी देवमूर्तिके पूजनके लिये कोई खर्च खानदानकी जायदादपर डाला गया हो, ऐसी सूरतमें वह खानदानी जायदाद जिसमें देवमूर्तिके पूजनके खर्चका बोझा पड़ा है इन्तकालकी जा सकती है, देखो-5 Cal. 438; 1 A. 182. लेकिन अगर जायदाद देवमूर्ति के नाम सब तरह अलहदा कर दीगई हो तो दूसरी सूरत होगी। लक्ष्मण गोंडन एक छोटेसे घरमें रहता था। पहले उसने अपने घरमें अम्मादेवीकी मूर्ति रखी और पूजा करता रहा। पीछे उसने पालनीके एक
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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