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________________ दफा ८१८] धर्मादेकी संस्थाके नियम १००५ अधिकार प्राप्त नहीं है और वे ऐसा उसी समय कर सकते हैं जब कि वे श्वेताम्बरों से इस सम्बन्धमें श्राज्ञा प्राप्त कर लें। धर्मशालाओं के सम्बन्धमें उन्होंने तय किया कि ये स्वेताम्बरों की सम्पत्ति है और यह कि बिना आशा प्राप्त किए दिगम्बर उनको काम में नहीं ला सकते। __ उन्होंने अपने इस निर्णयके साथ 'आम रिवाज' के सम्बन्धमें भी अपना फैसला दे दिया, जिसके सम्बन्धमें लार्ड महोदय एक अलग उल्लेख करेंगे। इस फैसलेके विरुद्ध अपील और मुखालिफ़-अपील ( Cross appeal) दायर की गई, लेकिन यह फैसला बहाल रहा और अब दोनों पक्ष वालों ने श्रीमान् सम्राट की कौंसिल में अपील की है। ___ मुक़द्दमे के बहुतसे अंश के सम्बन्ध में वाक्यात सम्बन्धी उन प्रश्नोंके ऊपर विचार है जिनके सम्बन्ध में झगड़ा है, और वाक्यात सम्बन्धी सभी आवश्यक प्रश्नों के ऊपर, सिवाय एक के, दोनों अदालतों का फैसला एक है, लेकिन लार्ड महोदयोंके सामने कोई भी ऐसीबात नहीं पेशकी गई है जिससे वे वाक़यात सम्बन्धी एकही प्रकारके फैसलोंको स्वीकार करनेसे रोकती हो। इन २० देवालयों और श्री गौतम स्वामी के मन्दिर के सम्बन्ध में यह बिल्कुल साफ़ है कि वे बहुत प्राचीन हैं,और यह कि ये स्थान जैनियोंके श्वेताम्बरी और दिगम्वरों में विभाजितहो जानेके पहिलेसे पवित्र माने जाते आए हैं। । इसमें कोई सन्देह नहीं कि धनी सम्प्रदाय होनेके कारण श्वेताम्बरोंने इन इमारतों को फिर से बनवाया है या उनमें कुछ उन्नति कराई है। लेकिन अगर वे पुरानी इमारतें इन दोनों सम्प्रदायों के इस्तेमाल के लिए पहिले से ही छोड़ दी जाती तो इनधर्म स्थानोंके सम्बन्धमें कोई अलग अधिन कार पैदा न होता। इस छोटीसी एक बिनाके ऊपर लाई महोदयोंकी रायमें वह फ़ैसला बहाल रहना चाहिए। अब बात रही सिर्फ उन ४ देवालयोंकी जो उन तीर्थकरोंकी पुण्य स्मृतिमें बनाए गए हैं जिन्होंने भारत बर्षके भिन्न भिन्न स्थानोंमें निर्वाण प्राप्त किया है । इनके सम्बन्धमें यह कहा जा सकता है कि ये स्थान बहुत प्राचीन समयसे काममें नहीं आये हैं। उन्हें श्वेताम्बर-सम्प्रदायने सन् १८६८ में बनायाथा। निस्सन्देह दिगम्बरों और श्वेताम्बरोंने इनमें पूजाकी है। लेकिन लार्ड महोदय नीचेकी अदालतोंसे इस बातमें सहमत हैं कि इस बातका कोई सुबूत नहीं है कि वे उसमें अधिकारके साथ पूजा करते थे बहुत सम्भव है कि वैश्वेताम्बरोंकी श्राशासे ऐसा करते रहे हों और कागजातमें लिखी हुई किसी भी बातसे यह ज़ाहिर नहीं होता कि उन शौके साथ जो श्वेताम्बरोंके अधिकारसे दी जा सकती हैं, यह पूजा करनेकी आशा दी नहीं जा सकती।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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