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________________ १००४ धार्मिक और खैराती धर्मादे [सत्रहवां प्रकरण मुनासिब अफ़सरने तैय्यारकी और एक नक़शा तैय्यार किया या जिसमें वह सारी पहाड़ी ( पर्वत ) “निजी गैर-मजरुआ आराज़ी' करार दे दीगई, और इसके बाद ४८ मदें गिनाई गई जैसे - एकान, मन्दिर, चबूतरा आदि और नीचे लिखी बातें भी लिख दी गई: __ “मन्दिर और धर्मशाला जिनका जिक्र इस खातामें किया गया है और जिनमें सब जैनियोंको बिना किसी व्यक्तिकी ओरसे आशा प्राप्त किए या विरोध हुए ठहरने और पूजा करनेका अधिकार है।" ____ यह बात साफ साफ मालूम नहीं होती कि 'मन्दिर' और 'धर्म शाला' शब्दोंसे तात्पर्य केवल पहिले वाले दोनों पदोंसे था अथवा इसका मंशा यह था कि यह उन सभी ४८ मदों के सम्बन्धमें भी लागू समझा जाय । लेकिन चाहे कोई भी अर्थ ठीक हो, श्वेताम्बरों को यह पसन्द न पाया और इसलिए यह वर्तमान मुकद्दमा उनकी ओरसे दायर किया गया जिसमें उस 'खेवट' के ऊपर एतराज़ किया गया और यह दावा किया गयाः"(बी) कि यह एलान कर दिया जाय कि मुद्दाअलेहों तथा सम्पूर्ण दिग म्बर सम्प्रदायको श्वेताम्बर-जैन-सम्प्रदाय की प्राज्ञा लिए बिना तथा पंसे ढङ्गसे, जिसको ये पसन्द न करें,गादी पालगंज, परगना गिरीडीह जिला हज़ारीबारा में पारसनाथ पर्वतके मन्दिर में पूजा करने का कोई अधिकार नहीं है, और यह कि विना एसी श्राज्ञा प्राप्त किए वे उक्त पर्वतकी धर्म-शालाओंमें भी नहीं रह सकते। (सी ) यह कि एक ऐसा हुक्म, दिया जाय जिसमें खेवट नं०७ के खास खतियानमें किए गए इन्दराज में यह संशोधन करने की इजाज़त दी जाय कि दिगम्बर-जैन-सम्प्रदाय पारसनाथ पर्वत पर बने हुए मन्दिरोंमें केवल श्वेताम्बरी जैनियों की आज्ञासे और एसे ढङ्गसे ही पूजा कर सकते हैं, जिसकी वे स्वीकृति दे देवें और धर्मशा लाओंमें केवल उनकी आज्ञा से ही ठहर सकते हैं।" जिस समय मुक़द्दमा प्रारम्भिक अदालत में पेश हुआ, तो यह मालूम हुआ कि ३१ हवेलियों ( Edifices ) की निस्वत झगड़ा है। इनमें से ५ (२६ से ३० नम्बर तक ) के सम्बन्धमें, जो परमेश्वरका ध्यान करने के लिए बने हुए चबूतरे हैं, यह स्वीकार किया गया कि वे बिल्कुल श्वेताम्बरोंके लिए हैं । उन २० देवालयोंके सम्बन्धमें, जो उन २० तीर्थकरोंकी पुण्य-स्मृति में बनाए गए थे, जिन्हें उस पर्वतपर निर्वाण प्राप्त हुआ था तथा श्री गौतम स्वामी के. मन्दिर में सबजज साहबने यह तय किया कि दोनों जैन-सम्प्रदायों को इनकी पूजाके सम्बन्धमें समान अधिकार प्राप्त हैं तथा ४ देवालियों और जल मंडिल के सम्बन्धमें उन्होंने यह निर्णय किया कि दिगम्बरोंको उनकी पूजाका कोई
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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