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________________ दफा ८१८ ] धर्माकी संस्थाके नियम जैन मतावलम्बी २४ महा पुरुषों को मानते हैं-- जिन्हें मोक्ष या निर्वाण प्राप्त होगया है और जो तीर्थकर कहलाते हैं । ये २४ महापुरुष बहुतसी बात में हिन्दू देवालयोंके देवताओं या उनमेंके कुछ देवताओंसे श्रेष्ठ समझे जाते हैं । इनमें से बीसके सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि उन्होंने इस संसार चक्र से अर्थात् आवागमनले पारसनाथ पर्वतके ऊपर जो कि बङ्गालमें जिला हज़ारीबाग़के अन्तर्गत है, मुक्ति अर्थात् निर्वाण प्राप्त किया है जिसके कारण जैनी लोग उस पर्वतको पूज्य और पवित्र मानते हैं। स्वयं इस पर्वतमें बहुत से प्राकृतिक गुण हैं और उसमें बहुतसी पर्वत श्रेणियां (चोटियां ) हैं । इन बीस स्थानोंके सम्बन्धमें, जो प्रकृति-जन्य सुन्दरता से सुशोभित हैं, यह समझा जाता है कि उन्हीं स्थानोंपर उन बीसों तीर्थकरोंने निर्माण प्राप्त किया थ और इनमें से प्रत्येक स्थानपर उस महात्मा के पदचिन्हकी पूजा होती है। वहां पर तोरण शृङ्गों ( कलशों) से आच्छादित एक कोट बना हुआ है जो इस समय सफेद संगमरमरका बना हुआ है । ये स्थान प्राचीन समय से अलग अलग हैं। शेष चार तीर्थकरोंने भारतवर्षके अन्य स्थानोंमें निर्वाण प्राप्त किया था । उनके सम्बन्धमें सन् १८६८ ई० से कल्पित स्थान अलग कर लिये गये. है और उनकी उसी प्रकार प्रतिष्ठाकी जाती है । १००३ उसी पर्वतके ऊपर एक दूसरे महात्मा गौतम स्वामीका मन्दिर, जो उस पर्वत के सबसे ऊंचे शिखरके ऊपर एक बहुतही प्रसिद्ध मन्दिर है जिसका नाम डाल मण्डिर है कुछ चबूतरे ध्यान आदिके लिये बनाये गए हैं, तथा दो धर्म शालाएं भी हैं । इस पर्वत पर प्रायः यात्री लोग आया करते हैं जो इन चारो मन्दिरोंमें, क्रमसे जाते हैं और उनमें से प्रत्येककी पूजा करते हैं। दिगम्बरों के मतानुस्वार यह पूजा, व्रत रखकर की जानी चाहिए, और वह समग्र पर्वत इतना है, जिस समयसे वे उसपर अपना पैर रखते हैं उस समयसे उनको कोई भी प्रकृति-जन्य काम करने, यहां तक कि थूकने आदि की मनाही हो जाती है । श्वेताम्बर लोग इन रूढ़ियोंके पाबन्द नहीं हैं। बहुत वर्षो से पालगजके राजा साहब, जिनकी ज़मीन्दारीमें वह पर्वत है, उन मन्दिरोंका प्रवन्ध और जीणोद्धार करते हैं और यात्रियों द्वारा चढ़ाई हुई सामग्रीको लेते रहे हैं किन्तु सन् १८७२ ई० में श्वेताम्बरोंने राजा साहब:से वार्षिक रकम देनेके सम्बन्धमें इक़रार किया और स्वयं उन पवित्र स्थानों का प्रवन्ध और जीणोद्धार करने तथा उन पर चढ़ाई गई सामग्री को . लेने लगे । कुछ समय के पश्चात् भिन्न भिन्न प्रकारके पूजा पद्धति और भिन्न भिन्न रुचि के यात्रियों के अपने अपने धर्म ग्रन्थोंके अनुसार कार्य करने के सम्बन्ध में. इन दोनों सम्प्रदायों में झगड़ा होने लगा; और छोटा नागपुर टेनेन्सी ऐक्ट सन् १६०८ ई० के अनुसार "खेवट" क़ायम करने के लिये कार्रवाई की गई ।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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