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________________ धार्मिक और खैराती धर्मादे [सत्रहवां प्रकरण wwwwwwwwwwww 'परपेच्युएटी' ( Perpetuaty ) की सृष्टिको मना करता है, देखो-- 9 C. W. N. 528-535; 25 Cal. 112-126-127. परपेच्युएटी-हिन्दूलॉ के अनुसार सिवाय धार्मिक और खैराती धर्मादों के दूसरे किसी काममें कोई जायदाद हमेशाके लिये नहीं लगाई जा सकती, देखो-11 Cal. 684; 12 I. A 103; 1 M. H. C. 400; 2 B. L. R. O. C. 11; 15 Cal. 409; 15 I. A 37; 14 Bom. 360. हमेशाके लिये नहीं लगाई जासकती यही परपंच्युएटीका कायदा है किन्तु धार्मिक और खैराती कामोंमें यह कायदा लागू नहीं होता इसीसे उनमें हमेशा के लिये जायदाद लगाई जा सकती है। ___ इङ्गलैन्डका वह कानून जो अमानुषी कामों के लिये दान करना मना करता है ऐसे धर्मादोंसे लागू नहीं हो सकता, देखो--11 Bom. H. C.214. नियमों के निश्चित करने वालेकी मृत्युके पश्चात्, देवोत्तर सम्पत्तिके नियम, उसके किसो उत्तराधिकारी द्वारा नहीं बदले जा सकते-श्रीपति चटरजी बनाम खुदीराम बनरजी 41 0 L. J. 22; 82 I. O. 840;, A. I. R. 1925 Cal 442. जैनियोंका प्रसिद्ध मुकद्दमा-जब देवालय या धर्मादामें कोई उन्नति करे तो सिर्फ उन्नतिसे उसे मालिकाना अधिकार नहीं प्राप्त होंगे। एक मशहूर मुक़दमे में प्रिवी कौन्सिलने यही फैसला हालमें दिया है -महारायबहादुरसिंह अपीलाण्ट बनाम सेठ हुक्मीचन्द वगैरा रेस्पान्डन्ट 24 A. L. J. 100; 1926 I. W. N. 199; 93 I. C. 219. वाकियात यइतिहास जैन सम्प्रदायका विस्तारसे बताया गया है वाकियात यह हैं जस्टिस लार्ड फिलीमोरने कहा कि--जिन कारणों से पटना हाईकोर्टके फैसलोंके विरुद्ध कीगई ये अपीलें पैदा हुई हैं वे संक्षेपमें इस प्रकार हैं:___जैन धर्मावलम्बी बहुत कालसे दो विभागोंमें विभाजित हैं-श्वेताम्बर और दिगम्बर । यही दो सम्प्रदाय समस्त भारतमें बड़े माने जाते हैं उनके ये विभाग इतने प्राचीन समयसे चले आते हैं कि इस सम्बन्धमें निश्चयके साथ नहीं कहा जासकता कि उनके ये विभाग ईस्वी सन्के आरम्भ होने के कुछ समय पहिले हुये थे या कुछ समय बाद । लार्ड महोदयों के सामने पेश किये गये कुछ कागजों में यह बतलाया गया है कि इन मतों में कुछ भिन्नता है, परन्तु इनमें यह विभाग मुख्यतः कार्य पद्धति और पूजन आदिके सम्बन्ध में ही हैं । मोटी मोटी बातें ये हैं कि 'श्वेताम्बर' अपनी पवित्र मूर्तियोंको स्नान करानेके पश्चात् पूजनके पहिले उनको वस्त्राभूषणं आदिसे आभूषित करते हैं और 'दिगम्बर' लोग पूजनके प्रथम उनके कुल कपड़े उतार लेते हैं और जिस कार्य पद्धति से उन मूर्तियों के सम्बन्ध में काम लिया जाता है वहीं कार्य-पद्धति कुछ पवित्र पद चिन्होंके सम्बन्ध में लागू होती हैं।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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