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________________ दफा ८०७ ] वसीयतके नियम पूजा पाठके लिये या खैरात के लिये या ऐसे सार्वजनिक कामोंके लिये कि जिनसे धर्म, विद्या, व्यापार, स्वास्थ्यरक्षा, या अन्य प्रकारसे जनताको लाभ पहुंचाने का उद्देश हो अपनी जायदाद दे सकता है। जब कोई जायदाद किसी आदमीको दानके तौरपर दी जाय तो यह दान वरासत के क़ानून नं० ३६ सम् १६२५ ई० की दफा ११४ की शर्तोंसे बरी नहीं होगा, देखो - 4 Mad. 200. ६८५ जब कोई जायदाद ऐसे दो आदमियों को शराकत में दी जाय कि जिनमें से एक उसके पानेका अधिकारी हो और दूसरा न हो, तो जो अधिकारी है: वही सब जायदाद पावेगा, देखो -- 16 I. A. 44; 16 Cal. 677. हिन्दूलॉ के अनुसार कोई आदमी दूसरेको अपनी ओरसे वसीयत करने का अधिकार दे सकता है परन्तु शर्त यह है कि जो लोग पैदा न हुये हों, उनके नाम वह दूसरा आदमी मी वसीयत न करे 241. A.93; 21 Bom. 709; I. C. W. N. 366. यद्यपि हिन्दूलों का यह नियम है कि दानके समय जो आदमी पैदा न हुआ हो, उसको दान नहीं दिया जा सकता, परन्तु बङ्गालमें एक्ट नं० 3 of 1904 और अवधमें सेटेल्ड्स्टेट्स एक्ट नं० २ सन् १६०० के द्वारा यह क़ैद कुछ ढीली करदी गई है वैसी आयदादोंमें कुछ सूरतों में तीन पुश्तों तक जायदाद दी जा सकती है । ( ५ ) उचित उद्देशके लिएही ट्रस्ट जायज हैं ट्रस्टके तौरपर जायदाद उतनेही सीमा तक, और उन्हीं उद्देशोंके लिये वसीयतसे दी जा सकती है जो क़ानूनके अनुसार हों । जायदाद मनकूला और गैरमनकूला दोनों ट्रस्टके तौरपर छोड़ी जा सकती हैं किसी एक आदमी या आदमियोंके हाथमें किसी दूसरे आदमी या श्रादमियोंके लाभके लिये जायदाद वसीयत से छोड़नाही 'ट्रस्ट' कहलाता है। जिन उद्देशोंके वास्ते जायदाद वसीयत द्वारा दीगयी हो उनके पूरा करनेके बाद जो जायदाद बच्चे वह उस आदमीको मिलेगी जो क़ानूनन् उसका अधिकारी होता अगर वह वसीयत न की गई होती; 9 B. L. R. 377. ट्रस्ट माना जायगा ? - एक वसीयतनामे में यह साफ़ साफ़ बताया गया था कि जायदाद के समर्पण करनेका यह अभिप्राय है कि उसके द्वारा श्री भगवानकी पूजा की जाय, सामयिक उत्सव या रसम मनाये जायँ, और पूजाके निमित्त आये हुये मुसाफ़िरोंको निवास स्थान दिया जाय, तथा जो ठाकुरद्वारे की आमदनी हो वह पहिले पूजा और उत्सवों में खर्च की जाय और जो उस खर्चे से बच जाय, वह दोनों तामील कुनिन्दोंमें आपस में बराबर बराबर बांट ली जाय। इसके बाद यह भी बताया गया था, कि उसके तामील कुनिन्दा उस मकानके इन्तक़ाल करने या रेहन करने या बय करने के अधिकारी न होंगे, 124
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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