SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1067
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८६ दान और मृत्युपत्र [सोलहवां प्रकरण और यदि वे इस प्रकारका कोई इन्तकाल करेंगे तो वह इन्तकाल बिलकुलही नाजायज़ समझा जायगा । यह भी घोषणा कीगई थी, कि यदि कोई तामील कुनिन्दा या उसका वारिस किसी समय उसका इन्तक़ाल करे, तो उसके वंशजों या किसी व्यक्तिको यह अधिकार होगा कि वह अर्जी द्वारा उस इन्त. कालको नाजायज़ करार दिला देवे। तय हुआ कि वसीयतनामेसे एक ट्रस्ट पैदा होता है और तामील कुनिन्दोंको केवल उसकी बचतसे लाभ उठानेका ही अधिकार है। वे उसका इन्तकाल नहीं कर सकते और न उनके खिलाफ किसी डिकरीकी तामील उसपर हो सकती है-तेजो बीवी बनाम श्रीठाकुर मुर्लीधर राज राजेश्वरी A. I. R. 1927 All. 23. (६) सीमाबद्ध दान हिन्दू ऐसी वसीयत कर सकता है कि उसके बाद उसकी जायदाद कोई आदमी अपनी जिन्दगी भर भोगे, या एक आदमीके बाद दूसरा, इस तरहपर कई आदमी उस जायदादको भोगे या सीमाबद्ध मुहत तक कोई आदमी उसे भोगे-10 I. A. 51;9 Cal. 952; 16 I. A. 29; 14 B. L. R. 226; 22 W. R.C. R. 409; 15 Bom. 943; 25 Cal. 112. कोई खास घटना घटित होने की शर्त पर जो दान वसीयतके द्वारा दिया जाय तो वह जायज़ है, मगर शर्त यही है कि जिसके लिये वह दान दिया गया हो वह वसीयत करने वाले की मौत के समय अवश्य जीवित हो। परन्तु यदि वह घटना घटित न हो, तो दान पानेवालेका हक़ उस दानमें से जाता रहेगा। उदाहरणके लिये देखो-जैसे 'अ' ने वसीयत द्वारा 'ब' को दान दिया और यह शर्त रखी कि अगर 'ब' निःसन्तान मर जाय तो वह दानकी जायदाद 'स' को मिले ऐसी सूरतमें यदि 'ब' कोई सन्तान छोड़कर मरे तो 'स' का हक्क दान परसे जाता रहेगा-34 Mad. 250; 6 M. I. A. 526; 9 M.I. A.123. दफा ८०८ जायदादकी आमदनी जमा होना मरने के बाद जायदादकी आमदनी जमा होती रहे ऐसी वसीयत हिन्दू कहांतक कर सकता है यह अभी ठीक निश्चित नहीं हुश्रा इस बिषयमें मतभेद है; अमृतलाल दत्त बनाम स्वर्ण मयी दासी (1897) 24 Cal. 5897 और I. C. W. N. 345. के मुकदमे में कलकत्ता हाईकोर्ट के जज मि० जस्टिस जेन् किन्सने माना कि उचित सीमाके भीतर हिन्दू ऐसी वसीयत कर सकता है। इस मुक़द्दमे की अपीलमें यह प्रश्न उठाही नहीं ( 25 Cal 662; 27 I. A. 1287 27 Cal. 9967 ) 25 Cal 690; के मामले में एक जजने यह राय नहीं मानी। ऐसे ही वसीयतके एक दूसरे मुक़द्दमे में कलकत्ता हाईकोर्ट के जज
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy