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________________ है। दान और मृत्युपत्र [सोलहवां प्रकरण wwwww 492; यही नियम उस आदमीसे भी लागू होगा जो वसीयत के द्वारा किसी जायदादका मालिक मुकर्रर किया जाय, देखो-24 I. A. 93; 21 Bom. 709; 25 Cal 405; 2 0. W. N. 295; 17 Bom. 600; 16 Bom. 4923 18 Bom.7; इसी तरह वसीयत द्वारा दी हुयी प्रायः सभी जायदादों से यह नियम लागू होता है। एक आदमीने अपनी वसीयतमें लिखा कि यदि मेरा पुत्र मेरे मरनेसे १० वर्षके अन्दर ब्याह करले तो अमुक जायदाद उसकी स्त्रीको मिले, अदा. लतमे उसकी वलीयतको ठीक माना और कहा कि वसीयत करने वालेके मरने के समय वह स्त्री पैदा हो चुकी थी इसलिये उसके नामकी वसीयत जायज़ थी, देखो-नाफरचन्द कुंडू बनाम रतनमाला देवी 15 C. W. N. 663 39 Cal. 87. कुटुम्बियों के समूहको दान-कुटुम्बियोंका कोई ऐसा समूह जिसमें कुछ लोग ऐसे हों कि जायदाद पानेके अयोग्य हों तो ऐसे समूहको दान देने के सम्बन्धमें जो नज़ीरे हैं उनसे कुछ कठिनाई पैदा होगई है। जब कुटुम्बियों के किसी एक समूहके हकमें कोई जायदाद वसीयत द्वारा दी जाय तो उस समूहके वे ही लोग वह जायदाद पावेंगे जो वसीयत करने वालेकी मौत के समय उसके पानेके अधिकारी थे। जब कुटुम्बियोंके किसी समूहको दान दिया जाय या वसीयत द्वारा कोई जायदाद दी जाय और उस समूहमें पीछे कुछ ऐसे लोग भी शामिल हो जाय जो वह दान या जायदाद पाने के अधि. कारी नहीं हैं तो वह दान या जायदाद उन्हीं लोगों को मिलेगी जो उसके लेनेके अधिकारी हैं, देखो-11 I. A. 164; 6 All. 360; 12 Cal. 663, 12 Mad. 393, 38 I. A. 64; 38 Cal. 468, 15 C. W. N. 395; 13 Bom. L.R. 3753 32 Cal.992 जब कुटुम्बियोंके किसी समूहके नाम वसी. यत द्वारा कोई जायदाद दी आय और वसीयत करने वालेकी मौतके कुछ समय बाद वह जायदाद उनको मिलने की शर्त हो तो उस समय वह जायदाद उन लोगोंको भी मिलेगी जो जायदाद पाने के अधिकारी हैं परन्तु वसी. यतके समय पैदा नहीं हुये थे, देखो-38 I. A. 54; 38 Cal. 468; 32Cal. 992, 38 Cal. 188,15 C. W. N. 113; 24 Cal. 646, 12 Cal. 663929 Mad. 41234 C. W. N. 671; 4 B. L. R. O. C. 231;28 Mad. 336. जब किसी वसीयतनामेसे यह मालूम हो कि वसीयत करने वालेने कुटुम्चियोंके किसी समूहके नाम जापदाद तो छोड़ी परन्तु उसमें जो लोग उस जायदादके पानेके अधिकारी हैं उनको देनेका विचार उसका नहीं था तो ऐसी वसीयत रद्द हो जायगी 22 Bom. 533; 15 I. A. 149. धर्मार्थ वसीयत--कोई भी हिन्दू वसीयत द्वारा किसी देवमूर्तिके लिये, मन्दिरके लिये, वा निजके या जन साधारणके लाभ के लिये, धार्मिक कृत्यों या
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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