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________________ दान और मृत्युपत्र [ सोलहवां प्रकरण प्राचीन हिन्दूलॉमें चार प्रकारके दान माने गये हैं । वे यह हैं ( १ ) देय अर्थात् जो दिया जा सकता हो ( २ ) अदेय अर्थात् जो न दिया जा सकता हो ( ३ ) दत्त, अर्थात् जायज़ दान ( ४ ) अदत्त, अर्थात् नाजायज़ दान इस सम्बन्धमें याज्ञवल्क्यका वचन इस प्रकार है ६५६ स्वकुटुम्बा विरोधेन देयंदारसुताद्रते नान्वयेसति सर्वस्वं यच्चान्यस्म्यैप्रतिश्रुतम् । अपने परिवार के भरणपोषणसे जो धन बचे वह दान करनेके योग्य है और स्त्री तथा पुत्रादिका दान नहीं हो सकता एवं परिवार वाले मनुष्यको उचित है कि सर्वस्व यानी मौरूसी और निजकी कमाई हुई स्थावर संपत्ति का सब दान न करे और जिसे दान देनेकी प्रतिज्ञा करे उसीको दे । आजकल क़ानूनमें यह बात स्पष्ट रूपसे मानली गयी है कि निजका कमायाहुआ स्थावर धन जिसका वह अकेला पूर्ण अधिकारों सहित मालिक है सबका सब दान कर सकता है । अदालत उसे जायज़ मानेगी, जंगम संपत्तिका दान तो जायज़ माना ही जाता है यदि कोई विशेष बात लागू न हो । हिबानामे पर प्रिवी कौन्सिलका मशहूर मुक़द्दमा - राव नरसिंहराव मुद्दई पीलाण्ट बनाम बेटी महालक्ष्मीबाई वगैरा मुद्दालेहुम रेस्पान्डेण्ट 26 All. L. J. 897 ( 1928 ) मामला यह था कि लखना स्टेट जिला इटावा के मालिक राजा यशवन्तराय थे उनका एकलौता लड़का बलवन्तसिंह था । बलवन्तसिंह बड़ा दुराचारी था और उसे क़तलके मुकद्दमे में देशनिष्कासनकी सज़ा मिल चुकी थी । राजा यशवन्तरावने ता० ४ सितम्बर सन् १८७५ ई० को एक हिबा - नामा लिखा (Gift ) जिसका खुलासा यह है कि राजा यशवन्तरावने अपने लड़के बलवन्तसिंहको वरासतसे वंचित किया और साफ़ लिख दिया कि मेरी जायदाद मेरे लड़के को न मिले साथही यह इच्छा प्रकटकी कि जब मेरे लड़के बलवन्तसिंह के लड़का ( पोता ) पैदा हो जाय तो उसकी १८ वर्षकी उमर समाप्त होने पर मेरी जायदाद उसे मिले। इस मतलब के लिये राजा यशवन्तरावने हिचनामे में यह लिखा कि मेरी जायदाद मेरी दूसरी विधवा रानी किशोरीको मिले और उसके बाद मेरी लड़की महालक्ष्मी बाईको मिले उसके पीछे मेरी लड़की के लड़के लाल रघुबन्शरावको मिले हिबा में अन्य अनेक शरायतें हैं कि किसके मरनेपर या किसके न होने पर कौन कैसा अधिकार रखेगा । राजा यशवन्तरावके मरनेपर लड़के बलवन्तसिंहने दावा किया कि मुश्तरका खान्दानकी जायदादमें वापको ऐसा हिवानामा करनेका अधिकार न था यह मुकद्दमा प्रिवी काउन्सिल तक गया और हर एक अदालतसे यही तय हुआ कि सब जायदाद राजा यशवन्तरावकी निजकी कमाई हुई थी इस
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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