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________________ बेनामी का मामला चौदहवां प्रकरण नोट--बेनामी' मामले इस समय तककी नजीरोंके आधारपर नीचे समझांगा गया है । पहले जमानेमें बेनामी मामले अर्थात् फर्जी मामले बहुत होते थे मगर लोगोंने बेईमानी बहुत की इसलिये अब कम होते हैं मगर होते जरूर हैं। अपने रिश्तेदारों, मित्रों, वं विश्वासनीय आदमियों के नाम दस्तावेजें लिखा ली जाती हैं जिन दस्तावेजोंमें उनका नाम फर्जी होता है पीछे जिनके नाम वे दस्तावेजें होती है तरह तरह के अपने दूसरे काम दबाव से नाजायज तौरसे वे कराते रहते हैं। कभी कभी अगर असली मालिक ने कोई एतराज किया तो चट उसकी वह जायदाद हजम कर जाते हैं । असल में होता तो यह है कि ज्यों ही किसी के नाम फर्जी मामला हुआ, प्रायः उसके दिलमें उस जायदादकी लालसा उत्पन्न हो जाती है और वह युक्तियाँ निकालने लगता है अन्तमें मुकद्दमे बाज़ीकी नौबत आती है । कलकत्ता हाई कोर्ट के माननीय एक जज ने कहा कि अदालतोंके सामने जब ऐसा मामला पेश हो तो उन्हें बड़ी होशियारी के साथ असली मालिक का हर तरहसे पता लगा लेना चाहिये । शहादत और कानून दोनों पर गम्भीर विचार करते हुए पहले के सम्बन्धों, उस वक्तकी स्थिति, फरीकैन के व्यवहार व चाल चलन आदिपर निगाह रखना चाहिये । आज कल के जमानमें फर्जी नामसे कोई काम न किया जाना चाहिये क्योंकि आखिरी नतीजा अकसर अच्छा नहीं होता आपसका व्यवहार टूट जाता है और परस्पर बेर बढता है। दफा ७७४ बेनामी किसे कहते हैं 'बेनामी' यह शब्द फारसी भाषाका है तथा दो शब्दों के योगसे बना है पहला 'बे' जिसका अर्थ है बिना, दूसरा 'नामी' जिसका अर्थ है 'नाम, इस तरह पर बेनामी' का अर्थ हुआ 'बिना नाम'। बेनामी शब्दसे यह ज़ाहिर किया जाता है कि किसीने कोई मामला खुद किया मगर किया दूसरे के नामसे अर्थात् अपना नाम उसमें ज़ाहिर नहीं किया। जैसे किसीने कोई जायदाद अपने रुपयेसे अपने लिये खरीदी मगर दूसरेके नामसे खरीदी ऐसे मामलेको 'बेनामी' मामला कहते हैं। बेनामी मामला दो तरहसे होता है एक तो अपने रुपयासे अपने लिये कोई जायदाद खरीदकी जाय मगर खरीदी जाय दूसरे किसीके नामसे, और दूसरा वह है कि पहले जायदाद खरीदी गयी अपने नामसे लेकिन पीछे वह फर्जी तौरसे दूसरे किसीके नाम इन्तकालकर दीगई। ये दोनों किस्मके मामले बेनामी मामले कहलाते हैं और वह शख्स जिसके नामसे जायदाद खरीदी गयी हो या 118
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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