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________________ बेनामीका मामला [ चौदहवां प्रकरण मामला हुआ हो 'बेनामीदार' कहलाता है । किसी जायदादको किसी फ़र्ज़ी नाम लेना अर्थात् जो आदमी जायदादका असली मालिक हैं उसके नामसे न खरीद करना इस देशमें बहुत प्रचलित है जितना कि हिन्दुओंमें इस बातका वाज है उतना ही मुसलमानों में है, देखो - मोलबी सैय्यद बनाम मुसम्मात बीबी 13M.I.A.232,346, 247, यह रवाज कुछ तो अन्धविश्वास के कारण चल पड़ा है कि किसीका नाम बरकतमन्द समझा जाता है और किसीका मनहूस और कुछ इस लिये चल पड़ा है कि लोग अपने घरेलू मामलोंको सब के सामने ज़ाहिर होने से छिपाते हैं । किन्तु इसके सम्बन्धमें बहुतसे लेन देन जालसाज़ी के मतलब से किये जाते हैं और बहुतसे लेन देन जो कि जालसाज़ी की ग़रज़से नहीं भी होते वे बादको जालसाज़ी की कार्रवाई करनेके लिये काममें लाये जाते हैं । विशेष कर क़र्ज़ से पीछा छुटानेके लिये ऐसी कार्रवाई की जाती है ताकि जिस समय लेनदार अपनी डिकरी जारी करावे तो यह जवान लगाया जा सके कि यह जायदाद दूसरेकी है इस लिये कुर्क़ नहीं हो सकती, देखो - मारकी का हिन्दू और मोहमदन लॉ P. 103. १३८ बेनामीका मामला किसी आदमीके द्वारा दूसरेके नामसे जायदाद खरीद लेनेही तक सीमाबद्ध नहीं है, बल्कि अगर कोई आदमी दूसरेके नामसे किसी जायदादका पट्टा लिखा ले, या अपने नामसे किसी जायदादको खरीद कर अन्धविश्वासके कारण दूसरेकेनाम मुन्तक़िल करदे या रेहन रखदे, तो इसको भी बेनामीका मामला कहेंगे, मुसलमान भाई इस तरहके बेनामी मामलेको 'फर्जी' कहते हैं । हिन्दुओंमें यह रवाज प्रचलित न थी इस लिये ऐसे मामले का धर्मशास्त्रों में कहीं उल्लेख नहीं मिलता । दफा ७७५ असली मालिकके हक़पर विचार जब कि एक मरतबा कोई मामला बेनामी ज़ाहिर कर दिया गया हो और अगर नीचे लिखे हुये नतीजे न निकलते हों तो जो कोई उस जायदादका असली मालिक होगा उसीके हक़की बात मानी जायगी यानी असली मालिक को उस जायदादपर पूरा हक़ प्राप्त हो जायगा । उपरोक्त नतीजे यह हैं ( १ ) अगर नीचे लिखी हुई दफा ७७७-१ का खण्डन न होता हो( २ ) अगर बेनामीदारने उस जायदादका इन्तक़ाल न किया हो देखो दफा ७७७-२. - ( ३ ) अगर बेनामीका मामला असली मालिकके लेनदारोंका रुपया मारने के लिये कियागयाहो और वह उद्देश पूरा होगया हो, देखो दफा ७७७ ३. कोई क़ानून ऐसा नहीं है जो बेनामी मामलेको मना करताहो । दूसरी तरपर यों समझिये कि ऐसा मानो कि महेशने एक जायदाद गणेशके नाम
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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