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________________ तीओ सन्धी। बोलहु पुरिसपरकमवयणिहिं आसासिय जणेरि सहुँ सयणिहिं। सव्वहं हियइ चमक्क पईसइ एहु कोवि सामान्न न दीसइ । जंपइ पुरिसयारि पडिसूरउ मंच्छुड्डु होसइ आसाऊरउ । पुजिउ विविहगुणालंकरणिहिं पहाणविलेवणवत्थाहरणिहिं । रयणनिहाणु जेम अवलोइउ तेणवि तं जि गेहु उज्जोयउ । तहिंमि विचित्तविलासई माणइं सहुं सुहियहिं तंबोलु समाणइं । बहुपरिमलई णिबंधइ फुल्लई परिहइ परिहणाई बहुमोल्लई। गुरुवच्छल्लु करइ जिणु वैदइ सजणजणहं मणइं आणंदइ । दुडर वरतुरंग परिवाहइ अप्पडिकूलु जणणि आराहइ । कामिणिजणमणणयणाणंदणु भमइं जेम णरनाहहो गंदणु । घत्ता । दोहग्गु जाउ पंकयसिरिहि पुत्तुवि गुणहि अलंकरिउ । इत्तहिवि तेण धणवइकइण कव्वहु संधिपवेसु किउँ ॥ १४ ॥ द्वितीयः सन्धिः पणविवि चंदप्पहु परमगुरु दिढु सम्मत्ते करिवि मणु । पुणु कहमि जेम किउ गयउरहो भविसिं दीवंतरगमणु । घल्लिय कमलमहासिरिदेवि धणवइ थिउ पडिबंधु करेवि । अवगणिवि सुहिसज्जणवयणई मोकल्लिवि सुवण्णमणिरयणइं। णियणयविणयायारपइत्तहो मग्गिवि लइय धीय धणयत्तहो । दिहि विवाहमंगल उग्घोसिय सुहिसजणजमणि परिओसिय । पियपरियणपरिवारसणाहिं किउ सम्माणदाणु णरणाहिं। पुरि पउरालंकारि भणाविउ लग्गुजोग्गु सुमुहुतु गणाविउ । पयइं विविहकम्मंतरि लाइय थंभिय कं९ कइय णेराइय । छडतोरणमंगलजलकलसिहिं अइहवसंखतूरँकयघोसहिं । दियवंदिणजयजयमाहप्पें किउ विवाहु भविसत्तहो बप्पें । घत्ता । दडिसंखतरकाहलरवेण रहसिं गयउरु गहगहइ। हरियत्तहो परियणि रणरणउ कमल कलंकु मणिव्वहइ ॥१॥ १ B मण रणिरणउ २ सावण्णु ३ B सवाणई ४ B बहोमुल्लई ५ Cadds इय भविसत्तकहाए पयडियधम्मत्थकाममोक्खाए । वुहधणवालकयाए बीयो संधी परिच्छेओ सम्मत्तो। ६ B मण ७ B कंदुकइय ८B तूरणिग्घोसहि
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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