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________________ भविसयत्तकहाए। सहियणु सरलसहोवि देक्खइ परियणु समविसमि उवलक्खइ । पत्ता । सवियविलास सारभूअ पुरि समवयहो।। अणुहुंजइ भोय हियइच्छिय धणवइण सहो ॥ १२ ॥ सोवि ताहिँ सवियारउ जंपइ सरसंसहीव सणेहु समप्पइ । करइ केलि पच्छण्णसमासइ ओहुंजइ वियर्डंपरिहासइ। सविणयकुलमजाय ण मिल्लइ विप्पिउ वयणु कयावि न बोल्लइ । मयणाउरमण बेउ ण भंजइ विविहविचित्तगुणिहिं मणु रंजइ । वरकीलापरिओवणु इच्छइ मुहमुहेण तंवोलु पडिच्छइ । सिहिणहं णउ सुहाइ हरियंदणु जह तं सुहयसणेहालिंगणु । परिसकह पच्छण्णवियारिं जिहं ण कलिजइ जणि अइयारिं । एम ताहि णवणेहणिरंतर गय दिण पक्ख मास संवच्छर । घत्ता । बहुकालें ताहिं पुत्तजम्मि अहिलसइ मणु। निप्फलई गयाइं कण्णोसण्णइं चवइ जणु ॥ १३ ॥ कमलसिरिहि समवयसंभूअउ गयउरि सव्वउ तियउ पस्यउ । मणि मणाउ अवखेरइ अंगउ एक्कहिं दिणि पुच्छिउ मुणिपुंगउ । परमेसर अकियत्थ किलेसई किं अवसाणि अम्हतउ होसह । तं तहितणउ वयणु परियच्छिवि कहइ महाँरिसि सउणुं णियच्छिवि। होसइ तुज्झु पुत्तु दिहिगारउ बहुणयविणयपरक्कमसारउ । तं गुतुवयणु लेवि सविसेसिं किय पंगुरणि गंठि परितोसिं । कहिउ गपि धणवइहि पयत्तें तेणवि पुलयपसाहियगत्तें। सदहाणि संतोसु पयासिउ ण चलइ जं मुणिणाहिं भासिउ । घत्ता । तो थोवदिणेहिं तिवलि तरंगइ पूरियई। संचलिउ पुरंधु अंगइ गब्भाऊरियई ॥ १४ ॥ तं जाणिवि कारणु सुहु संचिउ उहयकुलेहिं आणंदु पणचिउ । किउ आयरु दोहलय णिवंचिय फलमंगलअहितोए सिंचिय। जाउ पुत्तु जो मुणिवरभासिउ वंधवलोउ सयलु आसासिउ । कोकाविउ सुणिमित्तुवियक्खणु तेणवि तहो परियाणिउ लक्खणु । १ B सहावें दिक्खई २ A सहुँ ३ B ताहं सवियारिउ ४ B सरलसहावें ५ C वियड ६ B तहो ७B महासिरि
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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