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________________ लेकिन भीतर लालसा ही लालसा की लपटें उठती रहती हैं। इसलिए असली पहचान तुम अपने लिए पकड़ लेना, कसौटी बना लेना. असली सवाल भीतर है, बाहर नहीं है। अगर भीतर लालसा उठती हो तो संसार ही बेहतर है, कहीं भागना मत। कम से कम धोखे से तो बचोगे । किसी को धोखा तो न दोगे। सच्चे तो रहोगे । संसारी होकर ही सच्चे रहना, संन्यासी होकर झूठे मत हो जाना। कम से कम सचाई है तो किसी दिन संन्यास भी आयेगा; सचाई के पीछे आयेगा। झूठ के पीछे तो संन्यास कभी आ नहीं सकता। इसलिए मैंने अपने संन्यासियों को छोड़कर जाने को नहीं कहा है। उनसे कहा है, जहां हो वहीं डटकर रहना, भागना मत। भगोड़ापन कायर का लक्षण है। वह भयभीत आदमी की धारणा है। भागना मत, जहां हो वहीं डटकर खड़े रहना। इतना ही खयाल रखना कि भीतर की लालसा समझ में आने लगे। छोड़ने की भी नहीं कह रहा हूं। और अष्टावक्र भी नहीं कह रहे हैं कि तुम कुछ छोड़ दो, समझो।'ज्ञान से नष्ट हुआ है कर्म जिसका ऐसा ज्ञानी लोकदृष्टि में कर्म करनेवाला भी है लेकिन सच में वह न कुछ करने का अवसर पाता है, न कुछ कहने का ही ।' 'शान से नष्ट हुआ है कर्म जिसका ।' दो तरह से कर्म नष्ट हो सकता है. जबरदस्ती से, कर्म से ही कर्म नष्ट कर दिया तो धोखे में पड़ोगे। समझो, थोड़ी बारीक बात है। तुम्हारे भीतर क्रोध उठा; इस क्रोध को तुम दो तरह से नष्ट कर सकते हो- एक तो कर्म से, कि तुम चढ़ बैठो इस क्रोध के ऊपर। इसकी छाती पर बैठ जाओ, इसको हिलने-डुलने न दो, जाने न दो बाहर | सम्हाल लो अपने को, नियंत्रण कर लो अपने को। सब तरफ से अवरुद्ध कर लो। कहो कि नहीं करेंगे, चाहे कुछ भी हो जाये ! कर सकते हो ऐसा; लेकिन तुमने कर्म से क्रोध को रोका तो कितनी देर तक तुम कर्म करते रहोगे? शिथिल होओगे न ! सुस्ताओगे या नहीं सुस्ताओगे? रात सोओगे तो ? तब तो नियंत्रण ढीला हो जायेगा। फिर सपने में तुम किसी की हत्या कर दोगे। वह क्रोध वहां निकलेगा । या फिर क्रोध इस ढंग से निकलने लगेगा, तुम्हें पता भी न चलेगा। तुम दरवाजा खोलोगे और क्रोध से खोलोगे। और तुम्हें पता भी नहीं चलेगा। क्योंकि दरवाजे से तो कोई क्रोध है नहीं, क्रोध तो पत्नी से था। पत्नी के प्रति तो तुमने अपने को रोक लिया, अब तुम दरवाजा जोर से खोलते हो। तुमने देखा? स्त्री तुम पर नाराज हो, उस दिन ज्यादा कप-बशी टूट जाती हैं। तुम पर सीधा तो कुछ कह नहीं सकती। मन तो था तुम्हारा सिर तोड़ दे, लेकिन यह तो पति परमात्मा हैं और इनका सिर तो तोड़ा नहीं जा सकता। कुछ तो तोड़ना ही होगा। ऐसा कुछ सोचकर करती है ऐसा नहीं कह रहा हूं। ऐसा कुछ हिसाब लगाती है ऐसा नहीं कह रहा हूं। ये अचेतन प्रक्रियायें हैं। हाथ से बशी छूटने लगती है। ज्यादा छूटती है उस दिन, चाहे ऊपर से कुछ भी न कहे। तुमने देखा? जिस दिन पत्नी नाराज है, शायद एक शब्द न कहे, लेकिन चाय इस ढंग से ढालेगी कि तुम पहचान सकते हो कि क्रोधित है। चाय के ढालने में हो जायेगा। सब्जी में नमक ज्यादा
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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