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________________ पड जायेगा-नहीं कि उसने डाला। इतना होश कहां है कि होश से डाले, डल जाएगा। क्रोध यहां-वहां छिटकने लगेगा। जिसे तुमने बीज से पकड़कर रोक लिया है वह कोई कोने-कातर से रास्ते खोजने लगेगा। कहीं से तो बहेगा! कोई झरना बहता है, तुम एक चट्टान उस पर लगा दो तो अब शायद मूल धारा टूट जाये लेकिन छोटे -छोटे झरने फूटने लगेंगे। आसपास से चट्टान के छोटी-छोटी धारायें निकलने लगेंगी। निकलेगा तो क्रोध कहीं से। कर्म से क्रोध नहीं रुकता। क्योंकि कर्म से क्रोध के रुकने का कोई संबंध ही नहीं है। और कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि जो आदमी बहुत क्रोधी होता है वही आदमी कर्म से क्रोध को रोकने में समर्थ हो जाता है; क्योंकि रोकने के लिए भी क्रोध चाहिए-क्रोध पर क्रोध। अष्टावक्र कहते हैं, 'ज्ञान से नष्ट हुआ है कर्म जिसका।' नहीं, कर्म से कर्म को विजय कर लिया तो कुछ विजय न हुई। क्योंकि अंततः तो कर्म ही रहा, कर्ता ही रहे। 'ज्ञान से नष्ट हुआ है कर्म जिसका..।' जिसने जानकर, पहचानकर, बोध को जगाकर, क्रोध को देखकर, क्रोध का स्वभाव समझकर, बिना किसी चेष्टा के, बिना किसी आयोजन के, बिना किसी यत्न के, प्रयास के, क्रोध को भर नजर से देखकर जिसको यह समझ आ गई कि क्रोध व्यर्थ है। और किसको समझ न आयेगी? एक दफा भर नजर देखो भर। क्रोध को एक बार ठीक से देखोगे तो कैसे करोगे? रोकने का तो प्रश्न ही नहीं है, करोगे कैसे? फर्क समझ लेना। कर्म से रोकनेवाला क्रोध को रोकता है बिना समझे। और ज्ञान से जागनेवाला क्रोध को रोकता ही नहीं, क्रोध रुकता है अपने आप। क्योंकि क्रोध उठता था अज्ञान से, मूढुता से, मूर्छा से। वह मूर्छा टूट गई। क्रोध का मूल आधार छिन्न-भिन्न हो गया। यह सूत्र समझो। ज्ञानाद्गलितकर्मा यो लोकदृष्टद्यापि कर्मकृत्। नाप्पोत्यवसरं कर्तुं वस्तुमेव न किंचना। ज्ञानाद्गलितकर्मा......1 जिसका कर्म ज्ञान से गलित हुआ है कर्म से नहीं, किसी आयोजना से नहीं, सिर्फ बोध से, समझ से। जिसने दबा नहीं लिया है, जो भी भीतर है उसे ठीक-ठीक देखा है और देखने में ही कोई क्रांति घटित हुई। देखने से ही क्रांति घटित हुई देखने से क्रांति घटती है। आधुनिक भौतिकविद एक बड़ी अनूठी खोज पर पहुंचे हैं और वह खोज यह है कि जब तुम किसी चीज को देखते हो तो तुम्हारे देखने के कारण ही उस चीज में गुणधर्म रूपांतरित होता है चीज में भी! तुम एक वृक्ष को देख रहे हो गौर से, यह अशोक का वृक्ष खड़ा है पास, इसे तुम गौर से देखोगे तो तुम सोचते हो, हम देख रहे हैं, वृक्ष को क्या मतलब? वृक्ष को क्या होगा इससे? वृक्ष थोड़े ही
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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