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________________ जो सीने से लगा ले हो ऐसा एक जहान हर कोई ढूंढता है, एक मुट्ठी आसमान। हर कोई प्रेम और सुरक्षा के लिए दौड़ रहा है लेकिन वे दोनों चीजें मृगमरीचिका बनी रहती हैं। आखिर सुरक्षा है कहां? आप कहते हैं कि स्वयं को अस्तित्व के हाथों में छोड़ दो। लेकिन वह स्थिति तो और भी असुरक्षित दिखती है। प्रेम और सुरक्षा को कैसे उपलब्ध होवे? तक पूछा है। आदमी दो ही चीजें खोज रहा है प्रेम मिल जाये और सुरक्षा मिल जाये। सुरक्षा के लिए धन इकट्ठा करता है, प्रेम के लिए संबंध बनाता है। सुरक्षा के लिए मकान बनाता है, किले की दीवालें उठाता है, तिजौडियां खड़ी करता है। प्रेम के लिए पत्नी, पति, बेटे, बेटियां, मित्र, प्रियजन, परिवार इनका निर्माण करता है। सुरक्षा और प्रेम की खोज से ही तो सारा संसार निर्मित होता है। जिसको तुम संसार कहते हो वह है क्या? सुरक्षा और प्रेम को पाने की प्रबल आकांक्षा। और मिलती नहीं। दौड़ जारी रहती है। कितना ही धन हो तो भी सुरक्षा नहीं आती हाथ। सच तो यह है, पहले तुम अपने लिए डरे थे कि कैसे अपनी सुरक्षा करें; अब इस धन की भी सुरक्षा करनी पड़ती है। असुरक्षा दुगुनी हो गई। पहले अपने को बचाते थे अब यह धन भी है, इसको भी बचाना है। कहानियां कहती हैं न! कि आदमी मर भी जाता है तो मरकर सांप होकर अपने धन की तिजोड़ी के पास फन मारकर बैठ जाता है। जिंदा भर भी फन मारे बैठा रहता है, मरकर भी फन मारकर बैठ जाता है। जिनको तुम धन के मालिक कहते हो, धन के चौकीदार कहो। मालिक तो कभी-कभार कोई होता है। मालिक तो वह, जो देना जानता है। मालिक तो वह, जो देने में समर्थ है। गुरजिएफ ने कहा है, जो मैंने बचाया, पाया कि खो गया। और जो मैंने दिया, आखिर में पाया कि बच रहा है। दिया हुआ ही बचता है| देनेवाला ही मालिक है। लेकिन जो धन में सुरक्षा खोज रहा है वह देगा कैसे? वह तो एक-एक पैसे को पकड़े हुए है, जकड़े हुए है। सुरक्षा है। और फिर इस धन की भी सुरक्षा करनी पड़ती है। फिर ऐसे एक पर एक सुरक्षा की दौड़ बड़ी होती जाती है। प्रेम को तुम पाने की दौड़ में कितने संबंध बना लेते हो! संबंध तो बन जाते हैं, प्रेम कहां मिलता? तुमने यह मजा देखा? जिस स्त्री से तुम दूर हो उसके प्रति प्रेम मालूम पड़ता है। जैसे ही तुम्हारे कब्जे में आई, प्रेम छलांग लगाकर किसी और स्त्री पर सवार होने लगता है। प्रेम छलांग लगाता है। जो मिल गया उससे हट जाता है। किसी और पर खोज शुरू हो जाती है। क्योंकि जो मिल गया, पता चलता है, कहां प्रेम है? हड्डी, मांस, मज्जा मिल गई। एक स्त्री मिल गई, एक पुरुष मिल गया। प्रेम कहां है! फिर आकांक्षा पर मारने लगती है। फिर सपने फैलने लगते
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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