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________________ हैं। फिर खोज जारी है। मिला नहीं कोई कि खोज जारी नहीं हुई। हर मिलन फिर नई खोज पर निकल जाना हो जाता है। हर द्वार और नये द्वार खोल देता है। यात्रा बंद नहीं होती। मग मरीचिका का यही अर्थ होता है। तमने ठीक पछा कि प्रेम को खोजते हैं सरक्षा को खोजते हैं और दोनों मृग-मरीचिका बनी रहती हैं। और आप कहते हैं कि अपने को अस्तित्व के हाथों में छोड़ दो। उसमें तो और असुरक्षा मालूम होती है। निश्चित ही। क्योंकि असुरक्षा ही सुरक्षित हो जाने का उपाय है। जिसने बचाया उसने खोया। जिसने खोया उसने बचा लिया। तुम किस चीज की सुरक्षा कर रहे हो? जिस चीज की तुम सुरक्षा कर रहे हो वह बचनेवाली नहीं है। शरीर को बचाओगे? यह जाकर रहेगा। धन को बचाओगे? यह जाकर रहेगा। घर को बचाओगे? तुम नहीं थे तब भी था, तुम नहीं होओगे तब भी होगा। इस घर को तुमसे कुछ लेना देना नहीं है। किसको बचाओगे? न देह बचती, न धन बचता। सब खो जाते। और मौत तो एक दिन आकर सब मटियामेट कर देती। तुम्हारे बनाये हुए घरपूले रेत के घर सब गिरा देती है। क्या बचाओगे? जहां मौत है वहां सुरक्षा हो कैसे सकती है? जहां मौत है वहां सुरक्षा हो ही नहीं सकती। तो फिर क्या सुरक्षा का कोई उपाय नहीं? सुरक्षा की खोज में ही भ्रांति है। तुम असुरक्षित हो जाओ। तुम असुरक्षित होने को स्वीकार कर लो यही है, जब मैं कहता हूं कि अस्तित्व के हाथों में छोड़ दो। असुरक्षा जीवन का स्वभाव है। इसे बदला नहीं जा सकता। बच्चे थे एक दिन तुम, बचपन गया, रोक सके? क्या करते? कैसे रोकते? जवान थे तुम, जवानी गई, रोक सके? बुढ़ापा भी चला जायेगा। देह थी, देह भी चली जायेगी। जो भी है सब बह रहा है। यहां कुछ रुकेगा नहीं। यहां कुछ रुकता ही नहीं। सब जल की धार है। इस जल की धार में तुमने रोकना चाहा तो दुखी होओगे, बस। और तुमने जान लिया कि यह धार का स्वभाव है कि यहां कुछ रुकता नहीं-उसी क्षण दुख गया। अब दुख होने का कोई कारण न रहा। तुमने माना कि रुकता है, तो अड़चन आई। बुद्ध के जीवन में उल्लेख है। किसा गौतमी नाम की एक म उल्लख हा कसा गातमा नाम की एक सुदरी युवती का इकलौता बेटा मर गया। उसे बहुत चाहती थी| वही उसका सब कुछ था। वह उसकी लाश को लेकर गांव में घूमने लगी। वह वार-दवार दस्तक देने लगी कि कोई औषधि हो, कोई तंत्र-मंत्र, किसी का आशीष। लोग रोते, उस पर दया करते। सारा गांव उसे प्रेम करता था। वह प्यारी महिला थी। उसका पति भी मर गया था। इसी बेटे के सहारे जीती थी। और यह बेटा भी चल बसा। वह बिलकुल अकेली हो गई। उसने किसी तरह जहर का चूंट पीकर पति के मर जाने को स्वीकार कर लिया था। लेकिन अब यह बहुत ज्यादा हो गया। अब उसका आखिरी सहारा भी गया। उसका आखिरी भविष्य भी छिन गया। अब सब तरफ अंधेरा था। किसी ने उसको कहा कि पागल, हमारे दवारों पर दस्तक देने से क्या होगा? हम खुद दुखी हैं। तू ऐसा कर, बुद्ध आये हुए हैं तू उनके पास जा। बुद्ध गांव के बाहर ठहरे हैं। शायद उन महात्मा
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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