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________________ है, यह समय की प्याली में ही भरा है। यह सारा संसार समय की प्याली में भरा है। और अष्टावक्र इसे पीने में संकोच न करेंगे; जरा भी संकोच न करेंगे। क्योंकि अष्टावक्र ने उसे जान लिया जो समयातीत है, कालातीत है। कालातीत जानता वही है जो काल को पी जाये; जो कालजयी हो जाये। जो समय को जीत ले वही शाश्वत को जानता है। और जीतने का कोई उपाय लड़ना नहीं है। जिससे तुम लड़े उसे तुम कभी भी जीत न पाओगे जिससे तुम लड़े वह तुम्हारे विरोध में बना ही रहेगा| उसे तुम कभी आत्मसात न कर पाओगे। और अगर एक ही है जगत में तो तुम जिससे भी लड़े, अपने ही अंग से लड़े। अपने ही अंग को काट दिया, अपंग रहोगे। इसलिए मैं कहता हूं अष्टावक्र अगर आ गये हों तो मधु -प्याली, मधु की सुराही, वह जो काल की देवी है उसके सहित उसे पी जायेंगे। ध्यान की प्रक्रिया समय को पी जाने की प्रक्रिया है। इसलिए समस्त ध्यान की परिभाषाओं में एक बात निश्चितरूपेण आयेगी-कालातीतता; समय के पार हो जाना। चाहे जैन व्याख्या करें, चाहे बौद्ध, चाहे हिंदू चाहे ईसाई। जीसस से उनके एक शिष्य ने पूछा है अंतिम क्षणों में जब वे विदा होने लगे, जब उन्हें दुश्मन पकड़ने लगे-तों उसने पूछा, आपने बहुत बार समझाया है ईश्वर के राज्य के संबंध में एक बार और पूछते हैं, कोई एक ऐसा सूत्र बता दें कि हम पहचान लें, भूल न हो। पहुँचे तो पहचान लें कि यह प्रभु का राज्य आ गया। तो जीसस ने कहा, एक बात खयाल रखना-देयर शैल बी टाइम नो लीगर। वहां समय नहीं होगा। बस जहां तुम्हें ऐसी घड़ी आ जाये कि पाओ कि अब समय नहीं है, समझ लेना आ गया प्रभु का राज्य। जहां काल को पी जाओ; जहां अकाल हो जाओ। सिक्खों का मंत्र है. 'सत श्री अकाल।' उसका अर्थ होता है, सच वहीं है जहां काल मर गया, जहां अकाल, कालातीतता आ गई। वह ध्यान का सूत्र है, समाधि का सूत्र है। उस सूत्र में सारा ध्यान भरा है। लेकिन सिक्ख जिस ढंग से उसको उच्चारण करते हैं उससे लगता है कि वे मरने -मारने को उतारू हैं। सत श्री अकाल!' तब वे अपनी तलवार निकाल लेते हैं। जैसे यह कोई युद्ध का नारा हो। यह युद्ध का नारा नहीं है, यह अंतर्यात्रा का नारा है। यह तलवार में हाथ रखने का नारा नहीं है। यह कोई राजनैतिक नारा नहीं है, यह तो धर्म का मूल सार है। और जब नानक ने इसे चुना होगा तो क्या सोचकर चुना होगा? यही सोचकर चुना था कि यह याद दिलाता रहेगा कि समय के भीतर मन है, समय के पार हम हैं। समय को पी जाओ। दूसरा प्रश्न : हर कोई ढूंढ़ता है, एक मुट्ठी आसमान हर कोई चाहता है, एक मुट्ठी आसमान
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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