SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अक्षर से अक्षर की यात्रा-(प्रवचन-तीसरा) दिनांक 28 जनवरी, 1977; ओशो आश्रम पूना। पहला प्रश्न : आपने एक कथा कही है, 'स्वर्ग के रेस्टारेंट में एक बार जब लाओत्से, कस्फशियस और बद्ध आये तो कालसंदरी स्वर्णपात्र में लबालब जीवनरस भरकर लाई, पर बुद्ध ने जीवन दुख है कहकर जीवनरस से मुंह मोड़ लिया। कन्फ्यूशियस ने कहा कि जीवनरस ले ही आई हो तो लाओ, जरा चख लूं। और लाओत्से ने कहा कि जीवनरस को चखना क्या, पूरा पात्र ही ले आ, सभी पी लूं।' अब इस रेस्टारेंट में अष्टावक्र भी आ गये है। वे कालसुंदरी से जीवनरस स्वीकार करेंगे या नहीं? कृपा करके कहिये। अष्टावक्र की न पूछो! जीवनरस तो स्वीकार करेंगे ही, उसे तो पी ही लेंगे कालसुंदरी को भी पी जायेंगे। अष्टावक्र का स्वीकार बेशर्त और पूरा है। यहां जो भी है, एक ही है। इसलिए दवंदव का, निषेध का उपाय नहीं है। विष भी अमृत है। अष्टावक्र जिस परम प्रज्ञा की बात कर रहे हैं वहां संसार ही निर्वाण है। वहां पदार्थ ही परमात्मा है। वहां बांटने का उपाय नहीं है। वहां निषेध की संभावना नहीं है, विरोध की संभावना नहीं है। इसलिए तो पतंजलि जहां निषेध, योग, तप-जप की बात करते हैं वहां अष्टावक्र कहते हैं न त्याग, न जप, न तप, न विधि, न विधान। वैराग्य की जरूरत ही नहीं है। वैराग्य तो राग से बचने की चेष्टा है। राग और वैराग्य दोनों ही वंद्व हैं। अष्टावक्र की वीतरागता चरम है। तो मैं तुमसे कहता हूं अगर अष्टावक्र आ गये हों तो वे जीवनरस की पूरी सुराही तो पी जायेंगे, वे कालसुंदरी को भी पी जायेंगे। और कालसुंदरी का अर्थ समझते हो? कालसुंदरी का अर्थ होता है, समय। यह जो छोटी-सी कहानी है चीन की, बड़ी महत्वपूर्ण है। कालसुंदरी का अर्थ होता है, समय की देवी जीवन का रस लेकर उपस्थित हुई। और जिस व्यक्ति ने समय को ही पीना न सीखा वह जीवन के रस को पी ही न पायेगा। जीवन का रस समय की प्याली में ही भरा है। यह चारों तरफ जो भी तुम्हें रस भरा दिखाई पड़ रहा
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy