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________________ मृत्यु भी मिटा न सके। अभी तो किसी ने गाली दी, और मिट जाता सब। अभी तो किसी ने सम्मान किया कि तुम डांवाडोल हो गये। अभी तो दो पैसे हाथ लग गये तो तुम फूले नहीं समाते। दो पैसे गिर गये तो आत्महत्या का विचार उठने लगता है। अभी तो बात बड़ी छोटी है। मौत आयेगी तो तुम कैसे सम्हलोगे? और मौत आनेवाली है। इसीलिए तो लोग मौत से इतने डरते हैं। बुद्धि से काम न चलेगा बुद्धत्व चाहिए। __ अक्षयं गतसंतापमात्मानं पश्यतो गुनेः। वही हो पाता है संताप से मुक्त, जो अविनाशी के साथ अपना संबंध जोड लेता। अविनाशी के साथ, अकाल के साथ, जो कभी अंत नहीं होगा उसके साथ जो संबंध जोड़ लेता, वही संताप के पार हो जाता। 'और ऐसी आत्मा को देखने वाले मुनि को कहां विद्या?' फिर उसको शास्त्रों में नहीं खोजता पड़ता, शब्दों में नहीं खोजना पड़ता। विद्या की कोई जरूरत न रही। उसके भीतर ही दवार खुल गया ज्ञान का। मंदिर के पट अपने भीतर ही खुले। अब उसे किसी शास्त्र में नहीं जाना पड़ता। स्वयं का शास्त्र उपलब्ध हो गया। जहां से सब शास्त्र जन्मे हैं, सब वेद कुरान, गुरुग्रंथ जहां से जन्मे हैं वही स्रोत उपलब्ध हो गया। उस मूल स्रोत से संबंध जुड़ गया। अब बासे सिद्धांत और बासी धारणाओं की कोई भी जरूरत न रही। ऐसी आत्मप्रतीति में ही-इति निश्चयी-व्यक्ति निश्चय को, श्रद्धा को उपलब्ध होता है। विश्वास काम नहीं आते, श्रद्धा काम आती है। विश्वास बचकाना है, संस्कार मात्र है; श्रद्धा अनुभव है। और श्रद्धा जिसे पाना हो उसे ध्यान की नाव में सवार होना पड़े। जल्दी करो। समय बीत जायेगा। समय बीत ही रहा है। जल्दी करो कि ध्यान की नाव बन जाये। इसके पहले कि मौत तुम्हारे द्वार पर दस्तक दे, तुम्हारी ध्यान की नाव तैयार हो जानी चाहिए। तो फिर मृत्यु समाधि बन जाती है। फिर मृत्यु में तुम्हें परमात्मा के ही दर्शन होते हैं। फिर मृत्यु में उसी से आलिंगन होता है। अभी तो जीवन में भी तुम परमात्मा से चूके हो, तब फिर मृत्यु में भी मिलना होता है! और जब कोई मृत्यु में भी उसको ही पाता है तभी समझना कि जीवन में भी पाया है। और उसे पाये बिना हमारा सब पाया हुआ व्यर्थ है। उसे पाये बिना तुम और कुछ भी पा लो एक दिन पछताओगे। बुरी तरह पछताओगे। बहुत रोओगे। और फिर रोने से भी कुछ न होगा। क्योंकि गया समय हाथ लौटता नहीं। जो जा चुका, जा चुका। समय रहते जाग जाना चाहिए। जागो। आज इतना ही।
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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