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________________ मगर हमें मिल क्यों नहीं रहा है? हमें नहीं मिल रहा है तो जरूर कोई तरकीब होगी जो छिपायी जा रही है, बतायी नहीं जा रही। कोई तरकीब होगी, कोई कुंजी होगी, कोई सीढ़ी होगी जो हम नहीं लगा रहे हैं, नहीं तो हमको मिल क्यों नहीं रहा। तुम एक बात नहीं देखना चाहते कि तुम आंख बंद किये बैठे हो। तुम अंधे बने बैठे हो। तुम सोए हो। तुम मूर्च्छित हो| यह बात तुम स्वीकार नहीं करना चाहते। तुम यह बात स्वीकार करो कि मैं मूर्छित हूं तो अहंकार को पीड़ा होती है। कोई सीढ़ी होगी, जो मुझे नहीं मिली है, होगी कहीं, खोज लूंगा मुझमें कोई कमी नहीं है, सीढ़ी की कमी है। मैं तो ठीक ही हूं। कुछ लोगों को सीढ़ी मिल गयी, मुझे नहीं मिली है, बस इतना ही फर्क है। जनक में और तुममें सीडी का फर्क है, तुम सोचते हो। सीढ़ी तो बाहर की बात हुई। परिस्थिति का फर्क है, तुम सोचते हो। तुम अगर गरीब के घर में पैदा हुए हो और अगर अमीर के घर में कोई पैदा होकर ज्ञानवान हो जाए तो तुम कहोगे, क्या करें, हम गरीब के घर में पैदा हुए इसलिए ज्ञानवान होने की सुविधा नहीं मिली; वैसे तो हम भी ज्ञानवान हो सकते थे, मगर यह सुविधा नहीं मिली। तुमने सुविधा पर बात टाल दी। तुमने सीधी बात न ली कि मुझमें कोई कमी हो सकती है। सभी धनियों के घर में तो ज्ञानवान पैदा नहीं होते! और सभी गरीब भी ज्ञानहीन नहीं रह जाते। लेकिन तुमने बात टाल दी। तुमने देखा, जब भी कोई आदमी सफल हो जाता है, तुम कोई-न-कोई बहाने खोजते हो कि सफल क्यों हो गया। तुम पता लगाते हो कि रिश्वत दे दी होगी। कि रिश्तेदार मिनिस्ट्री में होंगे। जब तुम सफल होते हो, तब तुम कभी यह बात नहीं पता लगाते कि मैंने किसको रिश्वत दी और कौन मेरा रिश्तेदार मिनिस्ट्री में है! जब तुम सफल होते हो तब तुम सफल होते हो| जब दूसरा सफल होता है, तो सब भाई - भतीजा बाद है। जब दूसरा सफल होता है, तो रिश्वत खिला दी। एक महिला मेरे पास आयी, उसका बेटा तीसरी बार फेल हो गया परीक्षा में। तो वह कहने लगी कि आप कुछ करिये। क्या करना है? कहने लगी कि ये सब शिक्षक इसके पीछे पड़े हैं। शिक्षक इसके पीछे पड़े हैं! वे इसको पास ही नहीं होने देते। और भाई-भतीजावाद चल रहा है। अपने अपनों को पास कर रहे हैं। और रिश्वतखोरी चल रही है और हमारे पास तो देने को कुछ है नहीं। वह स्त्री मुझसे कहने लगी कि प्रतिभा का तो कोई मूल्य ही नहीं है। वह बेटा मैं जानता हूं कि उनकी प्रतिभा कैसी है! मगर तीन-चार साल धक्के खाते -खाते आखिर वह भी मैट्रिक पास हो गया। जब वह पास हो गया, तो मैंने उससे पूछा, कहो, किसको रिश्वत खिलायी? कौन भाई-भतीजावाद का माननेवाला मिल गया? उसने कहा, कैसी बातें कर रहे आप, वह लड़का तो प्रतिभाशाली है ही, चार-पांच साल उसको भटकाया इन लोगों ने। वह तो कभी का पास हो जाता। अब नहीं कोई भाई - भतीजावाद है! अब कोई शिक्षक किसी तरह की रिश्वत नहीं ले रहा है! तुम खयाल करना। जनक को हो गया सुनकर, तुम्हें नहीं हो रहा सुनकर तो एक ही बात हो सकती है, जरूर कोई तरकीब होगी। या तो जनक ने पहले कुछ तैयारी की है, कुछ इंतजाम कर लिया है कि सुनते से ही जाग गये। हममें और जनक में फर्क क्या है? हम क्यों नहीं जाग रहे? फर्क
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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