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________________ है। वह महाघटना है। यह तो कोई घटना ही नहीं है। यह तो बच्चे चढ जाते हैं। इसमें क्या सार है ? तो आदमी नयी-नयी तरकीबें खोजता है । हिलेरी जिस रास्ते से चढ़ा था, उस रास्ते से भी कोई कभी पहुंचा नहीं था गौरीशंकर तक वह पहुंच गया जिस दिन वह पहुंच गया, उसी दिन से पहाड़ चढनेवालों ने दूसरा रास्ता खोजना शुरू कर दिया, जो उससे भी कठिन है। अब उन्होंने चढ़ाई कर ली। अब वे पहुंच गये कठिन रास्ते से जिससे हिलेरी भी नहीं पहुंचा था। पहुंचे वहीं, लेकिन अब उनकी बड़ी प्रशंसा हो रही है। क्योंकि उन्होंने और भी कठिन मार्ग चुना जिससे कोई कभी नहीं पहुंचा-हिलेरी भी रहीं पहुंचा। जल्दी ही कोई और तीसरा मार्ग खोज लेगा। फिर हिलेरी चटु-चढकर पहुंचा था, कोई पागल हो सकता है घसिट - घसिट कर गौरीशंकर पर चढ़ जाए। क्योंकि घसिट कर कोई भी नहीं चढ़ा। या हो सकता है कोई योगी शीर्षासन कर ले और चढ़ने लगे सिर के बल । अहंकार को हमेशा कठिन में रस है। जितना कठिन हो, उतना रस है । परमात्मा सरल है, तो अहंकारियों को तो रस ही न रह जाएगा। परमात्मा कठिन है, तो अहंकारी उत्सुक है। कठिन में बड़ा आकर्षण है, चुंबक है। इसलिए मैं तुमसे कहता हूं कि तुम मंदिर-मस्जिदों में, गुरुद्वारों में, तीर्थों में जिन साधु - संन्यासियों को पाओगे, जरा गौर से देखना, उनमें सौ में से तुम निन्यानबे को महाअहंकारी पाओगे। क्योंकि वे परमात्मा को खोजने चले हैं। तुम्हारी तरफ वे देखते हैं कि तुम कीड़े-मकोड़े। क्या कर रहे हो पर दुकानदारी कर रहे हो, नौकरी कर रहे दफ्तर में, खेती -बाड़ी कर रहे - कीड़े मकोड़े ! परमात्मा को खोजो, देखो हमारी तरफ, हम कुछ कर रहे हैं! तुम क्या कर रहे हो? तुम तो पशु हो, तुम तो मनुष्य भी नहीं। क्यों? क्योंकि तुम सरल को खोज रहे हो। वे कठिन को खोज रहे हैं। और मैं तुमसे कहता हूं, सरल को खोजने में जो लग गया, वही संन्यासी है। जिसने कठिन को खोजने का मोह छोड़ दिया। यही त्याग है। कठिन का त्याग त्याग है, क्योंकि कठिन के त्याग के साथ ही अहंकार गिर जाता है। उसकी लाश हो जाती है। बिना कठिन के अहंकार जी ही नहीं सकता। कठिन की बैसाखी लेकर ही अहंकार चलता है। सरल के साथ अहंकार की कोई गति नहीं है। इतना सरल है परमात्मा कि कुछ करने का उपाय नहीं हुआ ही हुआ है इसीलिए तो अष्टावक्र कहते हैं, कर्ता होने से नहीं पाओगे। सिर्फ साक्षी होने से। मौजूद है, तुम जरा बैठकर, शात भाव से, आंख खोलकर देख तो लो । कहां दौड़े चले जाते हो? किस आप। धापी में लगे हो?' - महाघटना मत कहो। महाघटना कहकर तुमने पूर्वभूमिका बना ली, पूर्वभूमिकाओं के लिए इस महाघटना के लिए पूर्वभूमिका के रूप में क्या तैयारी जरूरी है?' अगर तैयारी जरूरी है, तो अष्टावक्र गलत हो गये। अगर पूर्वभूमिका जरूरी है, तो अष्टावक्र गलत हो गये। भूमिका की कोई आवश्यकता ही नहीं है। तुम वहीं खड़े हो, सीढ़ी लगानी नहीं है। तुम वहीं खड़े हो। तुम जहां खड़े हो, वहीं परमात्मा है । यह इतना क्रांतिकारी उदघोष है कि परमात्मा सरल है, सुगम है, मिला ही हुआ है। मगर तुम्हारी अड़चन भी मैं समझता । जब तुम यह बात सुनते हो तो तुम कहते हो कि होगा,
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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