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________________ का विरोध! कैसा कम्यूनिज्म, कैसा कम्यूनिज्म का विरोध! वह आदमी बिलकुल फिर खाली हो गया, उसकी स्लेट पोंछ दी। फिर उसको जो सिखाना हो, सिखाओ। अब उसको कम्यूनिज्म सिखाना हो, कम्यूनिज्म सिखा दो । खतरनाक औजार आदमी के हाथ लग गये हैं। सरकारों के हाथ में बड़ी खतरनाक शक्तियां आ गयी हैं। विरोधी को मारने की भी जरूरत न रही, यह तो और भी मारने से भी बुरा मारना हुआ मार डालते तो आदमी कम से कम गौरव से तो मरता । उसका मस्तिष्क पोंछ दिया। इस मस्तिष्क पोंछने की स्थिति से सिर्फ एक आदमी बच सकता है, वही, जो ध्यान को उपलब्ध हो गया हो। तुम उसका मस्तिष्क पोंछ डालो, कुछ फर्क न पड़ेगा, क्योंकि वह पहले से ही जान रहा है कि मैं मस्तिष्क नहीं हूं। अगर अष्टावक्र का मस्तिष्क पोंछो, तो नहीं पुछेगा। तुम मस्तिष्क पोंछ डालोगे, कुछ फर्क न पड़ेगा। अष्टावक्र की गरिमा जरा भी खंडित न होगी । इसलिए मैं कहता हू कि ध्यान के सूत्र जितने जल्दी सारी दुनिया में फैलाए जा सकें फैला दिये जाने चाहिए, क्योंकि सरकारों के हाथ में खतरनाक औजार लग गये हैं। आदमी की स्वतंत्रता इतने खतरे में कभी भी नहीं थी जितनी अब है। किसी भी आदमी का मस्तिष्क बड़ी आसानी से पोंछ डाला जा सकता है। अगर तुम्हारे पास ध्यान का सूत्र हो और तुम साक्षी बन सको तो तुम्हें कोई सरकार नष्ट न कर सकेगी। मगर साक्षी तो बहुत कम हैं, लोग तो कर्ता और भोक्ता बने हैं। लोगों तो अपने मन को ही सब समझ लिया है। 'स्वरूप को कहा रूपिता है, कहां विद्या है?' एक ऐसा तल अपने भीतर पाओ जहां तुम अपनी जानकारियों से ज्यादा पार, ऊपर, बड़े हो। जहां तुम जानकारी ही नहीं हो, जानने वाले हो । तुमसे कोई पूछता है, आप कौन ? कहते हैं, इंजीनियर । कहते, डाक्टर। मगर यह तो तुम्हारा होना नहीं है, यह तो तुम्हारी विद्या है, यह तुम्हारा जानना है। इंजीनियर होना तुम्हारा अस्तित्व नहीं है। और न डाक्टर होना तुम्हारा अस्तित्व है। यह तो तुमने विद्या के साथ अपना तादात्म्य कर लिया, आइडेंटिटी कर ली। यह तो तुमने बड़ा गलत जोड़ बांध लिया। यह तो गांठ बुरी है और महंगी पड़ सकती है। साक्षी हो। 'कैसी विद्या और कैसी अविद्या?' इसलिए एक बात खयाल रखना, साक्षी होने के लिए कोई बहुत बड़ा विद्वान और पंडित होना आवश्यक नहीं है। तुम जहां हो, वहीं से साक्षी हो सकते हो। लोग मुझसे कभी पूछते हैं आकर कि बिना शास्त्र पढ़े, बिना शास्त्र को समझे, बिना निष्णात हुए विद्या में कोई कैसे ध्यान को उपलब्ध हो जाएगा? यह तो बड़ी कठिन बात है। इसकी कोई कठिनाई जैसी बात ही नहीं है। तुम बडे बुद्धिमान हो, बहुत शास्त्रों के ज्ञाता हो, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता । या तुम बिलकुल नहीं शास्त्र के ज्ञाता हो, तुम्हें भाषा भी नहीं आती, तो भी फर्क नहीं पड़ता। साक्षी होने का मतलब है, तुम जो भी करते हो, उसमें अपने को जोडो मत। समझो । एक आदमी खेती-बाड़ी करता है। वह खेती-बाड़ी करते करते साक्षी हो सकता है।
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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