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________________ हैं, दोनों गिर जाते हैं। जो शेष रह जाए वही सच है। 'स्वरूप में कहा रूपिता?" अब यह बड़ा बेक वचन हो गया। उलटबांसी हो गयी। 'स्वरूप में कहां रूपिता?" स्वरूप का मतलब ही यह होता है कि स्वयं का रूप और उसमें जोड़ दिया- 'कहां रूपिता?' स्वरूप में कहा रूप, कैसा रूप, बात पूरी हो गयी। इतना ही कह रहे हैं जनक कि तुम्हारा जो अंतर है, वहा कोई रूप नहीं है, वहा कोई आकार नहीं, वहां कोई आकृति नहीं। असल में यह भी कहना कि जो तुम्हारा अंतरतम है, ठीक नहीं है, क्योंकि जो तुम्हारा अंतरतम है, वहां बाहर और भीतर भी कुछ नहीं। जो तुम्हारी वास्तविक सत्ता है, वही तो सबकी भी है। वहां तो सब एक हैं। वहां अलगअलग कोई भी नहीं है। स्वरूपस्य क्व रूपिता । और ऐसी परम अरूप दशा में कैसी तो विद्या और कैसी अविद्या? विद्या का अर्थ है, जो हम सीखते हैं। सब सिखावन मन में रह जाती है, इससे भीतर नहीं जाती। इसलिए तुम्हारे मन को अगर चोट लग जाए, तो तुम्हारी सिखावन भूल जाएगी। मेरे एक मित्र डाक्टर हैं। ट्रेन से गिर पड़े। चोट खा गये। चोट कुछ ऐसी लगी सिर में, ऊपर तो कोई घाव नहीं बना लेकिन भीतर उनकी स्मृति नष्ट हो गयी । बचपन से मेरे साथ, बचपन से मेरे साथ पढ़े, खेले-कूदे। जब मुझे खबर मिली और मैं गया गांव उनको देखने तो वे मुझे पहचान भी नहीं सके। वे मुझे ऐसे देखते रहे। उनकी आंखों में कोई प्रत्यभिज्ञा न हुई । कोई पहचान न बनी मैंने उनके पिता से पूछा, उनके पिता रोने लगे। वे कहने लगे कि किसी को नहीं पहचानता, न पिता को, न मां को, न पत्नी को, न अपने बेटे को । किसी को नहीं पहचानता। गरीब परिवार है। बडी मुश्किल से उनको पढ़ा-लिखाकर डाक्टर बनाया था, वह सब डाक्टरी धुल गयी। आदमियों को नहीं पहचानते ! तो वह जो जानते थे, जो सीखा था, जो विद्या अध्ययन की थी-होशियार डाक्टर थे- वह सब समाप्त हो गयी। कुछ याद ही नहीं आता उन्हें कि कभी उन्होंने धीरे जैसे छोटा बच्चा सीखता - कुछ पढ़ा कि लिखा। तीन साल तो ऐसी ही हालत रही। फिर धीरे है, पुन: उन्होंने सब सीखा। अब किसी तरह कामचलाऊ हो गये हैं। लेकिन इलाज करवाने तो उनके पास कोई नहीं आता। कौन उनसे इलाज करवाए, लोग संदिग्ध हो गये हैं। इनका अब कुछ भरोसा नहीं रहा। कुछ-कुछ स्मृति लौट आयी है, लेकिन सब टूटी-फूटी है। जिसको हम विद्या कहते हैं, वह तो सीखी हुई बात है। वह तो छीनी जा सकती है। अब तो ब्रेन-वाश के बहुत उपाय दुनिया में चलते हैं। रूस में अब वह अगर कोई आदमी कम्यूनिज्म-विरोधी है तो उसकी हत्या नहीं करते। हत्या करना बहुत पुराना प्राथमिक, बहुत आदिम उपाय हो गया। अब तो वह सिर्फ उसके मस्तिष्क में विद्युत की धाराएं दौड़ा देते हैं। इतने जोर से विद्युत की धाराएं दौड़ा देते हैं कि उसकी स्मृति सब नष्ट हो जाती है। जब उसकी स्मृति नष्ट हो जाती है, तो कहां
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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