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________________ का नाम परमात्मा है। और उस छवि तक जाने का जो उपाय है, वही संन्यास है। हिम्मत करो। इतनी हिम्मत की पास आने की तो विरोध छूट गया। अब और थोड़े पास आओ कि भय भी छट जाए। भय लगता है। पुराने शास्त्र कहते हैं, गुरु तो मृत्यु है। आचार्यो मृत्युः। क्योंकि गुरु के पास आकर तुम्हारी मृत्यु घटित होती है। तुम जैसे थे, वैसे तो मर जाओगे। और तुम्हें जैसे होना चाहिए वैसे तुम पैदा होओगे। तुम्हारी स्वतंत्रता की उदघोषणा होगी। तुम पहली बार आत्मवान बनोगे। एक जन्म तो तुम्हारी मां ने दिया है। वह शरीर का जन्म है। एक जन्म गुरु देता है, वह आत्मा का जन्म है। मां से पैदा होते वक्त भी बड़ी पीड़ा होती है। बड़ा कष्ट होता है। गुरु से फिर पैदा होते और भी बड़ी पीड़ा होती है, और भी बड़ा कष्ट होता है। लेकिन खयाल रखना, अधिकतर बच्चे जब पैदा होते हैं तो उनका सिर नीचे की तरफ होता है। और अगर कोई संभालनेवाली दाई पास न हो तो बच्चा जमीन पर गिरेगा सिर के बल और शायद सदा के लिए सिर खराब हो जाएगा, विकृत हो जाएगा। कभी-कभी ऐसा होता है कि कोई बच्चा सिर के बल पैदा नहीं होता, पैर के बल पैदा होता है, पैर पहले आते हैं, पर बहुत हजार में कभी एकाध| ठीक ऐसा ही कभी-कभी हजार में एकाध ऐसा भी होता है जो गुरु के बिना पैदा हो जाता है। जिसको गुरु की कोई जरूरत नहीं होती है। लेकिन हजार में नौ सौ निन्यानबे तो सिर के बल पैदा होते हैं। गुरु तो दाई है, 'मिडवाइफ। सुकरात ने यही कहा है कि मैं मिडवाइफ हूं दाई हां और जब तुम पैदा होओगे, तब सिर के बल पर न गिर जाओ कहीं, अन्यथा खतरा है। अक्सर ऐसा होता है कि बहुत से लोग गुरु से बचने के लिए किताबों से विधियां पढ़ पढ़कर काम में लग जाते हैं और उसका परिणाम भयानक होता है। जब कभी किताबों से पढ़ -पढ़कर अगर कहीं पैदा हो गये और किताबें पास में रहीं, तो किताबें दाइयां नहीं हैं। और किताबें कछ भी न कर सकेंगी। अगर चोट लगी कोई गहरी, तो किताब कुछ भी न कर सकेगी। तो जो लोग गुरु के बिना इस यात्रा में निकलते हैं, उनका सच में ही बड़ा खतरा है। वे वस्तुत: पागल हो सकते हैं। तुम्हें इस देश में कई लोग मिल जाएंगे, जिनको लोग 'मस्त' कहते हैं। मस्त' इत्यादि कुछ भी नहीं हैं, उनकी हालत बड़ी खराब है। वे पागलों से भी बुरी हालत में हैं। क्योंकि पागलों का तो मनोवैज्ञानिक इलाज भी कर सकता है, इन मस्तों का मनोवैज्ञानिक इलाज भी नहीं कर सकता। ये सामान्य भी न रहे और असामान्य भी न हो पाए। यह संसार छूट गया और वह दूसरा संसार इनके हाथ में आने से रह गया। ये बीच में अटक गये, ये त्रिशंक हो गये। इससे तो बेहतर है, संसार में ही सोए रहना। कहीं ऐसा न हो कि नींद भी टूट जाए और जागरण भी न आए। तब तुम बड़ी बेचैनी में पड़ जाओगे। तो अगर मेरे पास आ गये हो तो अब दूर मत बने रहना। और ऐसा कोशिश मत करना कि जो -जो मिले आसपास से बीन लें, इकट्ठा कर लें और अपने-आप काम में लग जाएं। तो खतरा तुम मोल लेते हो। तुम्हारी मर्जी! अगर कुछ वस्तुत: करना हो तो पास आने की पूरी हिम्मत रखना।
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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