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________________ जब आंखों में नहीं रह जाती तो अंतर्दृष्टि का नीलाकाश उपलब्ध होता है। 'यथाप्राप्त से जीविका चलानेवाला, देशों में स्वच्छंदता से विचरण करनेवाला तथा जहां सूर्यास्त हो वहां शयन करनेवाला धीरपरुष सर्वत्र ही संतष्ट है।' तुष्टि: सर्वत्र धीरस्य यथापतितवर्तिन। स्वच्छंदं चरतो देशान्यत्रास्तमितशायिनः।। यह सूत्र थोड़ा उलझा हुआ है। उलझा हुआ इसलिए है कि यह सूत्र प्रतीकात्मक है और अब तक इसकी जितनी व्याख्याएं की गयी हैं वे शाब्दिक हैं। शाब्दिक व्याख्या सीधी-साफ है। पहले शाब्दिक व्याख्या समझ लें, फिर प्रतीक-व्याख्या में उतरें। शाब्दिक व्याख्या अड़चन से भरी हुई नहीं है। 'यथाप्राप्त से जीविका चलानेवाला......।' जो मिल गया उससे ही अपना काम चला लेने वाला, यही संन्यासी की पुरानी व्याख्या है, परिव्राजक की। जो मिल गया, जैसा मिल गया, जहां मिल गया। 'यथाप्राप्त से जीविका चलानेवाला। देशों में स्वच्छंदता से विचरण करनेवाला।' और कहीं रुकनेवाला नहीं। एक जगह से दूसरी जगह। जो कभी पोखर नहीं बनता। सरिता की तरह गतिमान है। 'देशों में स्वच्छंदता से विचरण करनेवाला तथा जहां सूर्यास्त हो वहां शयन करनेवाला।' जो पहले से तय भी नहीं करता कि कहां रात रुकूगा। इतनी योजना भी नहीं बनाता। जहां सूरज ठहर जाता, वहीं वह भी ठहर जाता। जो किसी तरह की भविष्य की योजना नहीं बनाता। 'जहां सूर्यास्त हो वहां शयन करनेवाला धीरपुरुष सर्वत्र ही संतुष्ट है।' यह तो शाब्दिक व्याख्या है। इससे बात पूरी नहीं होती। और यह शाब्दिक व्याख्या अष्टावक्र के विपरीत भी जाती है। इसलिए इस व्याख्या से मैं राजी नहीं हूं। क्योंकि अष्टावक्र संसार के विरोध में नहीं हैं। और वे यह तो कह ही नहीं रहे हैं कि तुम सब छोड़ छाड़कर परिव्राजक हो जाओ और गांव-गांव भटको। और कोई बहुत बड़ा बुद्धिमान पुरुष ऐसा कह भी नहीं सकता क्योंकि अगर सारे लोग गांव-गांव भटकने लगें, तो यथाप्राप्त भी कुछ न होगा! किससे मांगोगे? तुम्हारा संन्यासी तो गृहस्थ पर निर्भर है। और जिस पर तुम निर्भर हो, उससे ऊपर तुम नहीं हो सकते। इसको स्मरण रखना। जिस पर निर्भर हो, उससे नीचे होओगे। इसलिए श्रावक भले साधु के पैर छूता हो, लेकिन गहरे तल पर साधु श्रावक से बंधा है। वह श्रावक से मुक्त नहीं है। और श्रावक के इशारे पर चलता है। तो साधु की जो स्वतंत्रता है वह झूठी है| बिलकुल असत्य है। असली मालिक श्रावक है। जहां से तुम रोटी पाते हो वहां तुम बंध जाते हो| मगर करोड़ों के मुल्क में अगर दो-चार हजार, लाख-दो लाख संन्यासी हों, चलेगा। लेकिन अगर करोड़ों लोग संन्यासी हो जाएं, फिर! थाईलैंड की सरकार को कानून बनाना पड़ा है। क्योंकि चार करोड़ की आबादी में कोई बीस लाख भिक्षु हैं। चार करोड़ की आबादी में बीस लाख भिक्षु जरा जरूरत से ज्यादा हो गये हैं। और उनको
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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