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________________ सत्य तो भीतर विराजमान ही है। सिर्फ आंख चाहिए। तुम्हारे रूप के अनुरूप संज्ञाएं चयन कर लूं तुम्हारी ज्योति-किरणें देखने लायक नयन कर लूं अभी अच्छी तरह आखर अढ़ाई पढ़ नहीं पाया प्रेम की व्याकरण का और गहरा अध्ययन कर लूं तुम जिसे प्रेम कहते हो, वह तो प्रेम नहीं है। वह तो तुम प्रेम के ढाई आखर अभी पढ़ ही नहीं पाए। कुछ–का–कुछ पढ़ रहे हो। मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन ट्रेन में बैठा है, अखबार पढ़ रहा है। लेकिन अखबार उल्टा रखे है। पढ़ना-लिखना तो आता नहीं। मगर यह भी नहीं चाहता कि लोग जानें कि पढ़ना-लिखना नहीं आता, इसलिए अखबार खरीद लिया है। और जब पास के आदमी ने कहा कि बड़े मियां, इससे और भद्द खुली जा रही है! न पढ़ते तो कम-से-कम पता तो नहीं चलता कि पढ़ना-लिखना नहीं आता। अखबार उल्टा क्यों पकड़े हो ? लेकिन आदमी तो बड़े तर्कजाल खोजता है। मुल्ला ने कहा, क्या तुम समझते हो! अरे, सीधा-सीधा पढ़ना-लिखना तो बहुतों को आता है, वह कोई खास बात नहीं, हमें उल्टा पढ़ा है! आदमी अपने अहंकार को तो बचाता है, सब तरह से बचाता है। कभी-कभी बेहूदे ढंग से भी बचाना पड़ता है तो भी बचाता है। अभी अच्छी तरह आंखर अढ़ाई पढ़ नहीं पाया प्रेम की व्याकरण का और गहरा अध्ययन कर लूं तुम्हारे तथाकथित शास्त्रकार तुमसे यही कहे चले जाते हैं कि प्रेम छोड़ो प्रेम पाप है! मैं तुमसे कहता हूं, जो तुम प्रेम की तरह जाने हो वह प्रेम ही नहीं है। अखबार उल्टा पढ़ रहे हो! अभी तो तुमने प्रेम के ढाई अक्षर पढ़े ही नहीं प्रेम की व्याकरण का और गहरा अध्ययन कर लूं निकल पाया नहीं बाहर अहम् के इस अहाते से जरा ये बांह धरती और ये आंखें गगन कर लूं अभी कोई पक्षी अपने अभी तो तुम अहंकार के भीतर ही जी रहे हो। ऐसे समझो कि जैसे अंडे के भीतर बंद है, और सोचता है आकाश मिल गया । अहंकार के अंडे के भीतर बंद हो तुम, प्रेम का आकाश अभी कहां है ! तोड़ो यह अंडा, निकलो इसके बाहर। यह अहंकार तो तुम्हें बांधे है। यह तुम्हें मुक्त नहीं होने देता। निकल पाया नहीं बाहर अहम् के इस अहाते से जरा ये बांह धरती और ये आंखें गगन कर लूं जब तुम्हारी आंखें गगन जैसी विस्तीर्ण होंगी, तब तुम्हारे पास वे नयन होंगे जो उसे देख पाते हैं जो तुम्हारे भीतर छिपा है। अंतर्दृष्टि अहंकार के हट जाने पर ही उपलब्ध होती है। अहंकार की बदलिया
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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