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________________ तो तुम्हारा होश बिलकुल खो जाता है। मरने के पहले तुम मूर्छित हो जाते हो। मौत घटी है बहुत बार, अनेक- अनेक शरीरों में तुम रहे हो और अनेक- अनेक शरीर तुमने छोड़े हैं, पर जब भी शरीर छटा तब तम बेहोश थे। और जब भी तमने नया गर्भ धारण किया तब भी तुम बेहोश थे। मरे भी बेहोशी में, जन्म भी लिया बेहोशी में, इसलिए तुम्हें जीवन के रहस्यों का कोई पता नहीं है। ज्ञानी जानकर कि मौत निश्चित है, निश्चित हो गया। बुद्ध को भूल से एक आदमी ने ऐसी सब्जी खिला दी जो विषाक्त थी| गरीब आदमी था। बुद्ध गाव में आए, उसने निमंत्रण कर लिया। अब वह निमंत्रण दे गया तो बुद्ध उसके घर भोजन करने गये। वह इतना गरीब था कि उसके पास सब्जियां भी नहीं थीं। तो बिहार में लोग कुकुरमुत्ते को इकट्ठा कर लेते हैं वर्षा के दिनों में, सुखाकर रख लेते हैं, फिर उसको साल भर खाते रहते हैं। कुकुरमुत्ता कभी-कभी जहरीला होता है। वह जो कुकुरमुत्ता उसने बनाया था, वह बिलकुल निपट जहर था। कड़वा था। उसने बुद्ध को जब परोसा और जब बुद्ध उसे खाने लगे, तो बुद्ध को लगा तो कि यह जहर है। लेकिन बुद्ध ने इतना भी न कहा उससे कि पागल, यह तूने क्या बना लिया! क्योंकि वह इतने भावविभोर होकर सामने बैठा पंखा कर रहा था, उसकी आंख से आंसू बह रहे थे-उसने कभी भरोसा न किया था कि बुद्ध उसके घर भोजन करेंगे! यह संभव भी नहीं मालूम होता था। बुद्ध उसके दवार आएंगे यह भी कभी भरोसा नहीं था। वे स्वीकार कर लिये, आ भी गये, उसे आंखों पर भरोसा नहीं आ उसकी आंखें आंसुओ से भरी थीं, गीली, वह पंखा कर रहा था। उसके घर में कुछ था भी नहीं। रूखी-सूखी रोटियां थी और कुकुरमुत्ते की सब्जी थी। वह रो रहा है, वह बड़ा गदगद है। अब बुद्ध को यह भी कहने का मन न हुआ कि ये जहरीले हैं। इसके मन को चोट पहुंचेगी यह बेचारा सदा के लिए पछताता रहेगा। इस पर ऐसा आघात पड़ेगा कि उसको शायद यह झेल भी न पाए-कि बुद्ध को घर लाया और जहरीले कुकुरमुत्ते खिलाए। तो वे और मांग लिये, जितने थे सब ले लिये, सब खा गये! कि कहीं वह बाद में चखे और पाए कि कड़वे हैं, तो पछताए। तो उन्होंने कहा इतने अच्छे हैं कि तू और ले आ! सब्जियां मैंने जीवन में बहुत खासी बहुत सम्राटों के घर मेहमान हुआ, लेकिन तेरी सब्जी की बात ही और है। तो वह गरीब बड़ा प्रसन्न हुआ, उसने सब कुकुरमुत्ते दे दिये। वह खाकर जब घर आए, तो नशा शरीर में फैलने लगा-जहर। तो उन्होंने अपने चिकित्सक जीवक को कहा कि मुझे लगता है कि अब मेरे दिन करीब आ गये हैं, यह जहर से मैं बच न सकूँगा। तो जीवक ने कहा, आप कैसे पागल हैं, आपने कहा क्यों नहीं, रोका क्यों नहीं, यह क्या पागलपन है! बुद्ध ने कहा, मौत तो होने ही वाली है; जो होने ही वाली है, उससे क्या फर्क पड़ता है! यह मैं रोक सकता था होने से कि वह आदमी दुखी न हो। यह मेरे हाथ में था। मौत तो मेरे हाथ में नहीं, वह तो होगी। आज रोक लूंगा, कल होगी, कल नहीं तो परसों होगी, क्या फर्क पड़ता है। मरते वक्त बुद्ध ने अपने शिष्यों को कहा कि सुनो, गांव भर में खबर कर दो कि जिस आदमी
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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