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________________ और ऐसा व्यक्ति हर्ष और शोक से मुक्त है। अब न तो कुछ खोने को बचा है, न पाने को बचा है। न कुछ दृश्य है, न कुछ अदृश्य है । न संसार है, न मोक्ष है। न बाहर का कुछ पाना है, भीतर का कुछ पाना है । न संसार की खोज है, न आत्मा की खोज है। जब सारी खोज समाप्त हो गयी, फिर कैसा हर्ष, फिर कैसा शोक! और ऐसी दशा में एक अपूर्व घटना घटती है 'वह न मरा हुआ है, न जीवित ही है।' इस सूत्र को खूब खयाल में लेना | ज्ञानी पुरुष एक अर्थ में मरा हुआ है उस अर्थ में मरा हुआ है, जिस अर्थ में तुम जीवित हो। तुम्हारी तरह जीवित नहीं है। तुम्हारे जीवन का क्या अर्थ है? दौड़- धाप, आपाधापी, धन-पद-प्रतिष्ठा महत्वाकांक्षा। तुम्हारा जीवन क्या है? एक ज्वरग्रस्त विक्षिप्तता । इस अर्थ में ज्ञानी जीवित नहीं है। न तो कोई ज्वर है, न कोई महत्वाकांक्षा है, न दौड़ रहा है। न कोई आपाधापी है। इस अर्थ में तो ज्ञानी मुर्दा है। लेकिन एक अर्थ में जीवित है, जिस अर्थ में तुम जीवित नहीं हो। वस्तुतः अर्थों में जीवित है। तुम तो झूठे-झूठे जीवित हो। तुम तो मरोगे। यह तुम्हारी आपाधापी, तुम्हारी महत्वाकांक्षा मौत से टकराकर टूट जाएगी सब। ज्ञानी कुछ ऐसे तल पर पहुंच गया है जिस तल पर मौत घट ही नहीं। जिस तल पर मौत एक असत्य है। होती ही नहीं। ज्ञानी अमृत को उपलब्ध हो गया है। इसलिए ज्ञानी जीवित है एक अर्थ में और मृत है एक अर्थ में तो न तो हम उसे मरा हुआ कह सकते और न जीवित कह सकते। क्योंकि हम कुछ भी कहेंगे तो गलती हो जाएगी। शायद वह जीवन-मरण के पार है। न मृतो न च जीवति । तो मृत है और न जीवित । ज्ञानी की बड़ी अनूठी दशा है। इस बात को प्रगट करने के लिए बड़े विरोधाभासों का सहारा लेना पडता है। झेन फकीर कहते, जब ज्ञानी नदी पार करता, तो पानी तो उसके पैरों को छूता है, लेकिन ज्ञानी के पैर पानी को नहीं छूते। अब यह बात जरा बेबूझ है। जब पानी पैरों को छूता है, तो फिर ज्ञानी के पैर पानी को क्यों न छुएंगे? छुएंगे ही। लेकिन फिर भी वे ठीक कहते हैं। यह उलटबांसी है। यह इसलिए कही जा रही है कि ज्ञानी हमारे संसार में रहता हुआ भी हमारे संसार का हिस्सा नहीं होता। हमारे जैसा श्वास लेता हुआ भी हमारे जैसा श्वास नहीं लेता। हमारे जैसा भोजन करता हुआ भी हमारे जैसा भोजन नहीं करता। ज्ञानी भोजन करते हुए भी उपवासा है। और तुम उपवास करो तो भी भोजन ही करते हो। तुमने कभी उपवास किया होगा तो तुम्हें पता होगा। उपवास करके देखना तो तुम दिन भर भोजन करोगे, बार- बार भोजन करोगे। ऐसे तो दो बार करते हो कि तीन बार, उस दिन दिन भर करोगे। जब भी बैठोगे खाली उलझन से बचोगे, फिर भोजन की याद आ जाएगी। पर्यूषण में जैन उपवास करते हैं तो ज्यादा देर मंदिर में ही बैठते हैं, फिर घर नहीं आते, क्योंकि घर आओ तो भोजन - भोजन की ही याद आती है। मंदिर में बैठे रहो तो लगे रहो, भजन-कीर्तन चल
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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