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________________ नहीं कर रहे हैं। तुम्हारे मन में यह भाव उठेगा कि देखो, सारी दुनिया मरी जा रही है आपाधापी में; हमको देखो कैसे शांत बैठे हैं! ध्यान कर रहे हैं। जब कि सारी दुनिया धन के पीछे मरी जा रही है, हम ध्यान कर रहे हैं; हमको देखो! यह नया कर्ता का भाव पैदा हुआ। ___अष्टावक्र कहते हैं, अगर अहंकार है तो कर्म है। कर्ता है तो कर्म है। और अगर अहंकाररहित धीरपुरुष बन गये तुम, तो फिर कर्म भी हो तो भी कर्म नहीं। निरहंकारधीरेण न किंचिद्धि कृतं कृतम्। फिर तुम करते रहो तो भी कर्म नहीं होता। मूल ध्यान रखनाः कर्म को अकर्म में नहीं बदलना है, कर्ता को अकर्ता में बदलना है। ' कर्म को अकर्म में बदलने के कारण इस देश में बड़ी मढता पैदा हई। जमाने भर के काहिल. सुस्त, अपंग महात्मा हो गये। जिनके जीवन में कोई ऊर्जा न थी और जिनके जीवन में कोई मेधा न थी ऐसे व्यर्थ के लोग परमहंस मालूम होने लगे। इस देश में बड़ी दुर्घटना घटी है। प्रतिभाहीन, सृजनशून्य, जड़बुद्धि लोग समादर को उपलब्ध हो गये। क्योंकि कर्म छोड़ दिया। और कर्म छोड़ने से यह पूरा देश दीन और दरिद्र हो गया। और कर्म छोड़ने से इस देश की सारी महिमा खो गई। तुम अगर गरीब हो, भूखे हो, बीमार हो, परेशान हो, सारी दुनिया में दीन-हीन हो तो तुम्हीं जिम्मेदार हो, कोई और नहीं। तुम्हारे महात्मा जिम्मेवार हैं और तुम्हारे तथाकथित पंडित जिम्मेवार हैं, पुरोहित जिम्मेवार हैं, जिन्होंने गलत व्याख्या दी। और जिन्होंने समझाया कि कर्म छोड़ दो। जिन्होंने कहा, संन्यास अकर्म का नाम है। संन्यास अकर्म का नाम नहीं है। सुनो अष्टावक्र को। काश, तुमने अष्टावक्र को सुना होता तो इस देश की कथा दूसरी होती। करो; सिर्फ अहंकार न भरे बस, मैं-भाव न रहे। परमात्मा को करने दो तुम्हारे भीतर से। तुम बांस की पोंगरी हो जाओ। गाने दो उसे गीत। गुनगुनाने दो। जो वह गुनगुनाना । चाहे, गुनगुनाने दो। छोड़ दो उसे पूरा स्वतंत्र। कहो कि मैं राजी हूं। तू जो गुनगुनाये, गुनगुनाऊंगा। तुझे जो करवाना हो, करूंगा। जीवन कर्म है, ऊर्जा है। इसलिए अकर्म तो ठीक नहीं। अकर्म तो आत्मघात है। हां, अकर्ता बन जाओ तो तुम्हारे कर्म में परमात्मा की महिमा प्रवाहित होने लगती है। तुम्हारा कर्म भी दैदीप्यमान हो जाता है। तुम्हारे कर्म में एक ओज, एक दूसरे ही आयाम की झलक आ जाती है। तुम्हारे छोटे-से कर्म के आंगन में परमात्मा का आकाश झांकने लगता है। ऐसा व्यक्ति सारी स्थितियों में परमात्मा को देखने लगता है। सारे कृत्यों में उसकी ही छाया पाने लगता है। और जो भी करता है, अनुभव करता है, उसी के लिए समर्पित है। यह कलियों की आनाकानी यह अलियों की छीनाजोरी यह बादल की बूंदाबांदी यह बिजली की चोराचोरी यह काजल का जादूटोना यह पायल का सादीगोना 64 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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