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________________ यस्यांतः स्यादहंकारो न करोति करोति सः । निरहंकार धीरेण न किंचिद्धि कृतं कृतम् ।। अहंकार है तो तुम कुछ न करो तो भी कर्म हो रहा है। क्योंकि अहंकार का अर्थ ही यह भाव है कि मैं कर्ता हूं। और अगर अहंकार गिर गया तो तुम लाख कर्म करो तो भी कुछ नहीं हो रहा है क्योंकि अहंकार के गिरने का अर्थ है कि परमात्मा कर्ता है, मैं नहीं । 1 इस बात को खयाल में लेना। ऊपर-ऊपर से भागने से कुछ भी नहीं होता । मुझे एक गांव में जाना पड़ा। गांव में एक बाबाजी आये हुए थे। लोगों ने कहा कि देखिये, बाबाजी कुछ भी नहीं करते, बस दिन भर बैठे रहते हैं। मैंने भी देखा, बैठे थे भभूत इत्यादि लगाये हुए, बड़े-बड़े टीका लगाये हुए, धूनी रमाये हुए। तो मैंने कहा, भभूत तो लगाते होंगे, टीका इत्यादि तो लगाते होंगे, तुम कहते, बाबाजी कुछ भी नहीं करते ? कुछ तो करते ही होंगे। कुछ न करना तो असंभव है । पालथी मारकर बैठे हैं, यह भी कर्म हो गया। जंगल भागकर जाओ तो भागना कृत्य हो गया । उपवास करो तो कृत्य हो गया। रात सोओ मत, जागते रहो तो कृत्य हो गया। जीने का नाम कृत्य है। जब तक जी रहे हो, कुछ तो करोगे । और मैंने कहा, यह भभूत इत्यादि किसलिए रमाये बैठे हैं? ये तुम्हारी राह देख रहे हैं। ये उनकी राह देख रहे हैं कि जो भभूत की पूजा करते हैं वे आते होंगे। चरण छुएंगे, पैसे चढ़ायेंगे। ये तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। और कोई आ जायेगा धनीमानी तो गांजा - भांग का भी इंतजाम करेगा। वे आदमी चौंक गये, जो मुझसे कह रहे थे। कहने लगे, आपको कैसे पता चला कि बाबाजी गांजा पीते हैं? पीते तो हैं। मैंने कहा, करेंगे क्या यहां बैठे-बैठे ? यह धूनी रमाये बैठे हैं, करेंगे क्या ? किसलिए रमाये बैठे हैं! कुछ तो कर ही रहे हैं। तुम कहते, बाबाजी कुछ भी नहीं करते। जब तक जीवन है तब तक कृत्य है : एक बात तो खयाल में ले लेना । कर्म से भागने का तो कोई उपाय नहीं। जो भी करोगे वही कर्म होगा । इसलिए कर्म से तो भागने की चेष्टा करना ही मत। उसमें तो धोखा बढ़ेगा। असली काम दूसरा है : अहंकार से मुक्त होना । कर्ता के भाव को गिराना । कर्म को गिराने से कुछ अर्थ नहीं है, कर्ता को जाने दो; फिर जो परमात्मा तुमसे करवायेगा, करवा लेगा। नहीं करवायेगा, नहीं करवायेगा । खाली बिठाना होगा, खाली बिठा देगा । चलाना होगा, चलाता रहेगा। लेकिन तुम न अपने हाथ से चलोगे, न अपने हाथ से बैठोगे । इसको ही तो अष्टावक्र ने कहा, सूखे पत्ते की भांति । हवायें जहां ले जायें, सूखा पत्ता चला जाता है। वह नहीं कहता है कि मुझे पूरब जाना है, यह क्या अत्याचार हो रहा है कि तुम मुझे पश्चिम लिये जा रहे हो? मुझे पूरब जाना है। सूखा पत्ता कहता ही नहीं कि मुझे कहां जाना है। पूरब तो पूरब, पश्चिम तो पश्चिम। ले जाओ तो ठीक, न ले जाओ तो ठीक। छोड़ दो राह पर तो वहीं घर । उठा लो आकाश में तो गौरवान्वित नहीं होता, गिरा दो कूड़े-करकट में अपमानित नहीं होता । सूखे पत्ते की भांति जो हो गया वही ज्ञानी है। और इस दशा को ही निरहंकार कहा है। यस्यांतः स्यादहंकारो न करोति करोति सः । 'जिसके अंतःकरण में अहंकार है, वह जब कर्म नहीं करता तो भी करता है।' तुम अगर खाली बैठोगे अहंकार से भरे हुए तो तुम्हारे मन में यह भाव उठेगा कि देखो, कुछ भी महाशय को कैसा मोक्ष। 63
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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