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________________ 'गुणहीन मलिन शरीर मेरा कुछ हार - सिंगार किया ही नहीं नहीं जानूं मैं प्रेम की बात कोई मेरी कांपत है डर से छतिया' और भक्त तो कहता है कि अगर प्रभु मुझे मिल जायेगा तो मैं घबड़ाता हूं। क्या कहूंगा ? क्योंकि मुझे प्रेम का तो कुछ पता ही नहीं। प्रेमी सदा ही यही कहता है कि मुझे प्रेम का पता नहीं। और ज्ञानी सदा कहता है कि मुझे प्रेम का पता है। जिसको पता नहीं है वह कहता है पता है, और जिसको पता है वह कहता है पता नहीं। उपनिषद कहते हैं, जो कहे कि मैं ईश्वर को जानता हूं, जानना कि नहीं जानता। सुकरात ने कहा है, जब मैंने जाना तो जाना कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूं। प्रेम सदा अनुभव करता है कि मैं कुछ भी नहीं जानता । 'नहीं जानूं मैं प्रेम की बात कोई मेरी कांपत है डर से छतिया पिया अंदर महल विराज रहे घर - काजन मैं अटकाय रही' और यह भी प्रेमी जानता है कि परमात्मा दूर नहीं है। 'पिया अंदर महल विराज रहे।' यहीं छिपा है। भीतर ही छिपा है। दूर हो कैसे सकता है ? प्राणों के प्राण में बसा है, रचा है, पचा है | दूर हो कैसे सकता है ? श्वास- श्वास में वही है। फिर उलझन क्या है ? उलझन इतनी ही है 'घर - काजन मैं अटकाय रही' मैं बाहर अटका हूं, प्रभु भीतर बसा है। प्रभु अपने ही घर में बैठा है और मैं घर के बाहर के कामों झा हूं। हर व्यस्ततायें हैं, उनमें उलझा हूं। 'पिया अंदर महल विराज रहे घर-काजन मैं अटकाय रही नहीं एक घड़ी - पल संग किया बिरथा सब बीत गई रतिया' जीसस के जीवन में एक उल्लेख है, वे एक घर में मेहमान हुए, मैरी और मार्था के घरबहनें। मार्था तो काम में लग गई। घर की सफाई करनी, भोजन बनाना, जीसस घर में मेहमान हैं। और मै जीसस के चरणों में बैठ रही, उनके पैर दबाने लगी। मार्था बार-बार उसे बुलाने लगी कि मैरी, तैयारी करो, मेहमान घर में हैं। इतना बड़ा मेहमान आया, भोजन बनाओ। और भी मेहमान आते होंगे, जीसस के शिष्य आते होंगे, तैयारी करो। लेकिन वह तो विमुग्ध बैठी। वह तो जीसस के पैर दबा रही है। आखिर जब बार-बार मार्था ने कहा तो जीसस ने कहा, मार्था सुन । तू तैयारी कर, मैरी तैयारी न कर सकेगी। तू उलझ, मैरी न उलझ सकेगी। जब मेहमान घर में है तो मैरी और कहीं नहीं हो सकती। 208 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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